स्वीकृति की चाह और नियन्त्रण का भाव
--
प्रश्न: स्वीकृति, मान्यता हमारे लिए इतना महत्व क्यों रखती है? जब कोई नहीं होता तो हम खुद अपनेआप को अपनी स्वीकृति देने लगते हैं।
आचार्य प्रशांत: स्वीकृति से, मान्यता से नियंत्रण का भाव आता है। जो हो रहा है वो मेरे चाहे हो रहा है। मैं पूरे नियंत्रण में हूँ। नहीं मैं बह नहीं रहा हूँ, मैं तो अपेक्षित दिशा में ही जा रहा हूँ। मेरी नाव हवाओं के साथ नहीं है, मेरी नाव मेरी मर्ज़ी के साथ है। आप देखिएगा वही घटना हो रही हो, अभी उस पर आपकी स्वीकृति की मोहर न लगी हो, आप उसका विरोध करने लगेंगे, और कोई आकर के आपकी सिर्फ एक झूठी, नाम मात्र की स्वीकृति ले ले तो फिर आपको वो चीज़ स्वीकार हो जाएगी।
घर के बच्चे को कहीं जाना है, जाना उसे वहीं है जहाँ उसे जाना है, पर माँ-बाप का ख़ास ज़ोर इस बात पर रहता है कि हमारी स्वीकृति ले करके जाओ। इस स्वीकृति में अकसर बच्चे की कोई भलाई नहीं है सिर्फ माँ-बाप के अहंकार कि तुष्टि है। बच्चे की इसमें कोई भलाई नहीं है क्योंकि जाना उसे वहीं है जहाँ उसे जाना है, आपका आग्रह बस इतना है कि हमारी अनुमति से गए के नहीं गए। बच्चे की भलाई महत्वपूर्ण नहीं है, आपका नियंत्रण में होना महत्वपूर्ण है, ‘हमारी अनुमति से गया है तो ठीक है।’
प्रेम विवाह आदि को लेकर के घरों में जो अकसर अड़चनें आती हैं वो इसलिए नहीं आती हैं कि आपके बच्चे ने जिसको चुना है उसमें कोई खोट है, अड़चन यह है कि उसने क्यों चुना। चुनाव में गलती नहीं हो गई है कि माँ-बाप विरोध में अब खड़े हैं, गलती इसमें है कि तुम्हें चुनने का हक़ किसने दिया! नियंत्रण में कौन हैं? हम, तो हमें ही तुम्हारा भाग्य निर्धारित करने दो।
जहाँ पर हमारी स्वीकृति से या अस्वीकृति से कोई अन्तर नहीं पड़ता हम वहां भी उसको ठूसे हुए हैं। आप अपनी भाषा को देखिये — मैं सांस ले रहा हूँ। ‘आप’ सांस ले रहे हैं, वाकई? ज़्यादा नहीं बस आप चार मिनट के लिए रोक के दिखा दीजिये फिर। पर वहां भी हमारा दावा यह है जैसे सांस भी हमारी स्वीकृति से आ-जा रही हो। अच्छा लगता है, ‘जो हो रहा है वो मेरे मुताबिक हो रहा है।’ बढ़िया लगता है।
आप कुछ देखेंगे, कुछ सोचेंगे, कुछ समझेंगे तो शब्द कैसे रहते हैं — फिर मैंने ये देखा, मैंने ये समझा और मैंने ये किया, जैसे की ये सब कुछ ‘आप’ के करे हुआ हो। यहाँ पर ये मशीनें हैं, ये लाइट है, ये एसी है, इन्हें क्या हक़ है ये कहने का कि पहले हम चले फिर हमने ठंडा किया गया और फिर थोड़ी देर बाद हम चुप हो गए, बंद हो गए। पर ये बचे हुए हैं अभी, सौभाग्य है इनका कि इन्हें अहंकार की बीमारी नहीं लगी है, नहीं तो एसी का दावा जानते है क्या होता?
पहली बात तो ये कि मैं बहुत कूल हूँ और दूसरी बात हर इतवार सुबह नौ बजे मैं चला जाता हूँ और…