स्वयं से ही डर

ये बड़ी मजेदार स्थिति है। एक तरफ तो मन भटकना चाहता है, दूसरी तरफ वो पूरी तरह भटक भी नहीं सकता।

आपको जो चीज़ सबसे ज़्यादा आकर्षित करती है, सबसे ज़्यादा डराती भी वही है। प्रेम में गहरा आकर्षण है, पर बिल्कुल हालत खराब कर देता है। डर भी सबसे ज़्यादा उसी से लगता है। और यही पूरी ज़िन्दगी में घूम-फिर कर होता रहता है। मन अच्छे से जानता है कि उसकी सारी धारणाएं झूठी हैं।

इच्छा भी देखिये न क्या है! मन इच्छा भी क्या करता है? मन यही तो इच्छा करता है न कि इच्छा पूरी हो जाए और मैं शांत हो जाऊं। तो हम कहते हैं कि मन लगातार इच्छाओं में रहता है लेकिन मन की आखिरी इच्छा यही है कि मैं इच्छा रहित हो जाऊं। हम जो कुछ चाहते हैं, हम उसका बिल्कुल विपरीत चाहते हैं।

आपको चाहिए स्थिरता, आपने माध्यम गति को बना रखा है। मन जानता है अच्छे से कि ये सारी बातें, जो भी मैं करता रहता हूँ, ये ऐसे ही हैं, इनमें कुछ रखा नहीं है, इसी कारण आप जो कुछ भी करते हो, उसको ले कर के हमेशा थोड़े से शक में रहते हो। वो शक इसीलिए उठ रहा है कि मन तो वो कर रहा है जो वो कर रहा है, पर मन के नीचे भी एक है जो बैठा है और वो जान रहा है कि मन जो भी कुछ कर रहा है वो पागलपन है।

हमें दुनिया में कुछ नहीं डराता, हमें अपने वैभव से ज़्यादा। मन को सबसे ज़्यादा यही बात डराती है कि मैं कितना वृहद हूँ, कितना पूरा हूँ, कितना सुन्दर हूँ। हम अपने आप से ही ईर्ष्या करते हैं। आप सोचिये न एक बड़ा मस्त पौधा है, वो झुक-झुक के अपनी जड़ें काट रहा है। वैसे हम हैं। मन जिस स्त्रोत से निकला है, उसी स्त्रोत से वो आकर्षित भी होता है, क्योंकि शांति उसे वहीं मिलेगी पर उसी स्त्रोत से सबसे ज़्यादा रंजिश भी रखता है क्योंकि वो स्त्रोत मन की उद्दंडता को चलने नहीं देता। वो मन को बार-बार बताता रहता है कि तू कितना बेवकूफ है, जो हमें कई बार लगता रहता है।

सच भीतर ही बैठा है, और वो आपको रास्ता दिखाने को तैयार है, आप उसके शिष्य तो बनिए।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org