स्वयं को धार्मिक बोलने वाले लोगों ने ही धर्म का नाश कर रखा है

कहीं धर्म के नाम पर जानवर काटे जा रहे हैं।
कहीं धर्म के नाम पर इंसान काटे जा रहे हैं।
कहीं धर्म के नाम पर किसी वर्ग का शोषण किया जा रहा है।
कहीं धर्म के नाम पर लड़ाइयाँ चल रही हैं।
कहीं धर्म के नाम पर मानसिक संकुचन है।
कहीं धर्म के नाम पर विज्ञान का विरोध हो रहा है।
कहीं धर्म के नाम पर तमाम तरह के अंधविश्वासों को बढ़ावा दिया जा रहा है।

तो ये सब चीज़ जब बाहर से लोग देखते हैं, तो कहते हैं —
“बाप रे बाप! धर्म का अगर ये मतलब है तो हमें धार्मिक नहीं होना भाई।”

जो लोग अपनेआप को धर्म गुरु बोलते हैं या सब जो धर्मिक नेता हैं, इन्होंने धर्म का ये हश्र कर दिया है कि धीरे-धीरे लोग धर्म से ही कटते जा रहे हैं, दूर होते जा रहे हैं।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org