स्वयं का बचाव जीवन से पलायन!
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प्रश्न: सर, बच कर भाग जाने की प्रवृत्ति से कैसे बचूँ?
वक्ता: पहले ये समझते हैं कि ये भागने की प्रवृत्ति है क्या। और ये समझने के लिये अपनेआप से ये पूछना पड़ेगा कि “मैं ये जो कर रहा हूँ, ये मुझे बचाए रखेगा क्या? मैं जो कर रहा हूँ क्या ये मुझे बचाए रखेगा? अपने बचाव-मात्र के लिए कर रहा हूँ? या मैं जो हूँ, उसे जारी रखने, उसे आगे बढ़ाने के लिए करा रहा हूँ?”
बचाना , जारी रखना, बढ़ोतरी, ये तीनों एक ही बात हैं। अगर उस लिए कर रहे हो, तो ये क्या हुआ?
श्रोतागण: एस्केप।
वक्ता : ये एस्केप(पलायन) हुआ। एस्केप समझ गए अब क्या है?
किसी भी एक्टिविटी को एस्केप कब कहते हैं? जब वो तुम्हारे सेल्फ को बचाए रखे या और मजबूत करे या उसकी सुरक्षा करे । दिन में हमारी ९९ प्रतिशत एक्टिविटीज़ ऐसी ही होती हैं ना? हम जो हैं वही बने रहकर उन एक्टिविटीज़ को करते हैं।
उन एक्टिविटीज का होना हमसे निकलता है। तो वो एक्टिविटीज़ हमें नहीं बदल सकतीं। उन एक्टिविटीज का होना किससे निकल रहा हैं?
श्रोता : हमसे।
वक्ता : तो वो हमें बदल नहीं सकती हैं। ऐसी सारी एक्टिविटीज़, एस्केप कहलाती हैं। वो एक्टिविटी जो तुम्हारे होने को कायम रखे या और बढ़ा दे तो वो एस्केप है। तो आप असल में किससे भाग रहे हैं?
श्रोता : चेन्ज।
वक्ता : चेन्ज(बदलाव ) । वो बदलाव जो अवश्यम्भावी है, आने ही वाला है । तुम उससे भागना चाह रहे हो, यही पलायन है।
और उस बदलाव का ही नाम लाइफ़ है।
मानते हो कि नहीं? आमतौर पर, किसी मोटे आदमी की प्लेट कैसी देखोगे…?
श्रोता: भरी हुई ।
वक्ता: ये जो खाना है, ये कहाँ से निकल रहा है? उसके अपने दिमाग से। तो ये उसको बदल नहीं सकता, बल्कि ये उसके होने को और ज्यादा बढ़ा देगा। तो जो मोटा आदमी है, वो और ज्यादा…?
श्रोता: मोटा हो जायेगा।
वक्ता: अब एक दूसरे तरह का खाना भी होता है, कि किसी को कुछ समझ में आया है, और तुम उसकी थाली पर फल देख रहे हो। ये भी खाना ही है, पर ये खाना तुम्हारे होने को बढ़ाता नहीं, ये तुम्हारे होने को बदल ही देगा। इसके आगे एक खाना और होता है, कि तुम क्या खा रहे हो — दवाई। वो तो तुम्हारे होने कि बढ़ोतरी बिलकुल ही नहीं है। वो तुम्हें एकदम ही बदल देगी। तो कोई ये न सोचे कि दिन की एक-आध चीज़ें एस्केप होती हैं। हम जो कुछ भी करते है वो क्या है…?
श्रोता: एस्केप ।