स्मार्ट लड़कियाँ, कूल लड़के, अमीरी, और अंग्रेज़ी
प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, हम एक छोटे गाँव से बारहवीं करे। अब दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदू कॉलेज में दाखिला पाए। एक साल हो गया है, अच्छा नहीं लग रहा है कुछ। पढ़ाई छूट गया है। यहाँ सुंदर लड़की और अमीर लड़का का ही चलता है। हम सुंदर और अमीर दोनों नहीं हैं। बहुत हीनभावना भर गया है। कॉलेज छोड़ दें?
आचार्य प्रशांत: भाई, थोड़ा समझो कि ये जो हो रहा है ये क्या हो रहा है। भारत इतना मूरख कभी नहीं था। कंचन-कामिनी, दोनों का यथार्थ भारत ने इतना समझा, इतना समझा कि जैसे यहाँ की मिट्टी को ही अकल आ गयी हो। यहाँ का जैसे कोई बिल्कुल आम, औसत आदमी भी, गाँव का एक किसान भी, इतनी बुद्धिमानी रखता था कि कंचन-कामिनी पर नहीं मरना है। हालाँकि इनका जो आकर्षण होता है वो बड़ा प्राकृतिक होता है, बड़ा ज़बरदस्त होता है, लेकिन फिर भी कम-से-कम सैद्धांतिक रूप से तो उसको पता था कि ये चीज़ें ठहरने वाली नहीं होतीं। यही वजह थी कि भारत ने शारीरिक सौंदर्य को कोई बहुत बड़ी बात नहीं माना। हालाँकि यहाँ श्रृंगार के काव्य भी रहे हैं, श्रृंगार के शास्त्र भी रहे हैं, विविध तरीकों से सौंदर्य का चित्रण भी किया गया है, लेकिन फिर भी शारीरिक रूप से कोई इंद्रियों को कितना आकर्षक लग रहा है, इस चीज़ को भारत ने कभी बहुत महत्व दिया नहीं। मैं आज से सौ दो-सौ साल पहले तक की बात कर रहा था।
आँखों को चौंधिया देने वाला रूप, आकर्षण, लावण्य, भारत ने कभी बहुत कीमत का माना ही नहीं। स्त्री में इस बात की कभी बहुत प्रशंसा नहीं की गयी कि उसके पास दमदमाता, दहकता रूप है। और आज भी अगर आप थोड़ा देहात की तरफ जाएँगे…