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स्त्री शरीर का आकर्षण हावी क्यों

प्रश्नकर्ता (प्र): आचार्य जी, मुझे स्त्री के शरीर का इतना आकर्षण क्यों रहता है?

आचार्य प्रशांत (आचार्य): तुम्हारी मूल समस्या ये नहीं है कि तुम उत्तेजित इत्यादि हो जाते हो। तुम्हारी मूल समस्या ये नहीं है कि तुम बहक जाते हो। तुम्हारी मूल समस्या है कि तुम खाली हो।

खाली रहोगे, तो ऐसा होगा ही होगा।

पत्ता डाल से टूट गया, तो उसके बाद किधर को तो हवा ले ही जाएगी उसको — पूरब नहीं तो पश्चिम। प्रश्न ये नहीं है कि — “मैं पश्चिम क्यों बह गया?” पश्चिम को नहीं बहे होते तो, पूरब को बहते। पूरब को नहीं बहे होते, तो किसी और दिशा।

पर एक बार डाल से टूट गए, उसके बाद ये पक्का है कि किधर को तो बहकोगे ही, किसी-न-किसी दिशा की गुलामी तो करनी पड़ेगी, क्योंकि अब वृक्ष से टूट गए, मूल से वियुक्त हो गए।

अभी ये उम्र है तुम्हारी, जवान हो, शरीर सक्रिय है, तो कह देते हो कि — “कामोत्तेजना बहा ले जाती है।” थोड़े बुड्ढे हो जाओगे, तो कह दोगे कि — “पैसा बहा ले जाता है।” थोड़ी और उम्र बढ़ जाएगी, तो कह दोगे, “चिंताएँ उठा ले जाती हैं।”

पूरब को नहीं बहोगे, तो पश्चिम को बहोगे, दक्षिण को बहोगे।

अनंत दिशाएँ हैं।

किसी एक दिशा की शिकायत मत करो कि — “मैं वासना की दिशा क्यों बह जाता हूँ?” उस दिशा नहीं बहोगे, तो किसी और दिशा बहोगे। मूल समस्या क्या है? खालीपन — पत्ता पेड़ से टूटा हुआ।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant
आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

Written by आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

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