स्त्री-रूप के प्रति आकर्षण
प्रश्नकर्ता: स्त्री रूप के प्रति अत्यधिक आकर्षित हो जाता हूँ ऐसा क्यों होता है?
आचार्य प्रशांत: देखो आकर्षित हम सभी रहते हैं। बात इतनी ही है कि हम जिसके भी प्रति आकर्षित रहते हैं वो एक आकार, रूप, नाम, व्यक्ति, वस्तु, चीज, इंसान ऐसा कुछ होता है। कुछ भी हो सकता है। अब ये तुम्हारे संस्कारों पर, तुम्हारे मन की जो पूरी अन्तर्व्यवस्था है उस पर निर्भर करता है कि तुम किस रंग, किस रूप, किस नाम, किस वस्तु के प्रति आकर्षित होगे। कुछ विशेष मत समझना इसको कि अगर तुम किसी खास लिंग की तरफ खिंचते हो और दूसरे लोग हैं, वो कहीं और को खिंचते हैं। किसी को प्रतिष्ठा चाहिए, किसी को अपनी विचारधारा स्थापित करनी है, किसी को प्रगति चाहिए खिंचाव सबके पास है। ऐसा कोई नहीं है जिसके पास खिंचाव न हो। राग-द्वेष ये सब के पास हैं। तुम जिधर को भी खिंचोगे वो संसार होगा, वो प्रकृति होगी।
प्र: मैं पूछ रहा था क्या ये भी माया है?
आचार्य: हाँ, बिल्कुल। तुम और किसी ओर आकर्षित हो ही नहीं सकते। जिधर को भी जाओगे उधर को ही, संसार को ही पाओगे। संसार के अलावा क्या है जो तुमको खींचेगा क्योंकि तुम खिंचते हीं तभी हो जब कुछ दिखाई दे या जब कुछ कल्पना में आए अन्यथा तुम्हें कहाँ खिंचाव अनुभव होता है? अब होता क्या है कि अगर कोई किसी विचारधारा की तरफ खिंच रहा है, अगर कोई किसी देव मूर्ति की तरफ खिंच रहा है। अगर कोई सामाजिकरुप से मान्य किसी गतिविधि की ओर खिंच रहा है, तो उसको अपने भीतर किसी प्रकार का कोई संशय, ग्लानि, कुंठा इत्यादि नहीं होते बल्कि उसको ये लगता है कि ये खिंचाव तो शुभ है। शुभ ही…