स्त्री-पुरुष के मध्य आकर्षण का कारण

स्त्री-पुरुष के मध्य आकर्षण का कारण

प्रश्न: आचार्य जी, प्रणाम।

प्रेम क्या है? हम किसी स्त्री से प्रेम क्यों करते हैं? स्त्री-पुरुष के मध्य जो आकर्षण होता है, उसका क्या कारण है? स्त्रियों के प्रति जो सकारात्मक या नकारात्मक विचार आते हैं, उनका कारण क्या है?

आचार्य प्रशांत जी: तुम करते हो, तो तुम बताओ न। कोई अज्ञात बात होती, तो मैं बताता। जो तुम कर रहे हो, वो तो तुम ही बताओगे न कि क्यों कर आए। मुझे क्या पता।

और ऐसा भी नहीं कह रहे तुम कि, एक बार ऐसा क्यों हो गया। तुम कह रहे हो, “हम ऐसा क्यों करते हैं?” इसका मतलब बारम्बार हो रहा है, होता ही जा रहा है। तो तुम बताओ कि ये हो क्या रहा है। मुझे क्या पता। जो कुछ होता है तुम्हारे साथ, उसकी ख़बर लेते हो कि — “ये क्या हो गया?” या फ़िर फिसल जाते हो बस कि — “बस हो गया।”

चलो हो गया। फ़िर? “अरे फ़िर से हो गया।” फ़िर? “अरे फ़िर से हो गया।” होता ही जा रहा है। जितनी देर में खड़े होते हो कि हाथ बढ़ाएँ कि न फिसलो अब, तुम फ़िर गिर गए। और हाथ यहाँ जा रहा है, तुम नीचे ज़मीन पर हो, फ़िर फिसल गए।

इतना भी अचानक नहीं हो जाता, सोचा-समझा निर्णय होता है। माना कि काम बेहोशी में होता है, पर पूरे बेहोश नहीं होते तुम।

सहमति तो तुम्हारी होती है, कि — “चीज़ मज़ेदार है, मौका कौन चूके।” या एकदम यकायक हो जाता है, कि — “हम क्या करें? हो गया”? बात सीधी है — मज़ा आता है। बात इतनी सीधी है कि इसमें मैं समझाऊँ भी क्या। नहीं है? सेब खाते हो, मज़ा आता है ज़ुबान को। कोई मालिश करे, मज़ा आता है पीठ को। वैसे…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org