स्त्री-पुरुष के मध्य आकर्षण का कारण
इतना भी अचानक नहीं हो जाता, सोचा-समझा निर्णय होता है।
माना कि काम बेहोशी में होता है, पर पूरे बेहोश नहीं होते तुम।
सहमति तो तुम्हारी होती है, कि — “चीज़ मज़ेदार है, मौका कौन चूके।” या एकदम यकायक हो जाता है, कि — “हम क्या करें? हो गया”? बात सीधी है — मज़ा आता है। बात इतनी सीधी है कि इसमें मैं समझाऊँ भी क्या। नहीं है? सेब खाते हो, मज़ा आता है ज़ुबान को। कोई मालिश करे, मज़ा आता है पीठ…