स्त्री कौन? मालकियत क्या?

स्त्री कौन? मालकियत क्या?

स्त्रियाँ प्रेम में उन्मत्त होकर जिस काम को करने लग जाती हैं, ब्रह्म भी उन्हें उस काम से नहीं हटा सकता।

*~ श्रृंगार शतकम, श्लोक संख्या 54*

जब कोई स्त्री अपने को तुम्हारे चरणों में रख देती है, तब अचानक तुम्हारे सिर पर ताज की तरह बैठ जाती है।

~ ओशो

प्रश्न: आचार्य जी, ‘स्त्री’ क्या है? मालकियत से क्या आशय है?

आचार्य प्रशांत: कुछ विशेष नहीं। पुरुषों से बात कर रहे थे तो इसलिए कह दिया, कि — “स्त्री तुम्हारे चरणों में बैठ जाती है तो तुम्हारे सिर का ताज हो जाती है।” यही बात पुरुषों के सम्बन्ध में भी लागू होती है।

जो कुछ भी तुम्हें लगता है कि तुम्हारी मालकियत में आ गया, वो तुम्हारा मालिक हो जाता है, क्योंकि तुम उसके साथ अपनी पहचान जोड़ लेते हो।

तुम किसी स्त्री के मालिक हो गए, यह बात तुम्हारे जीवन में अब महत्वपूर्ण हो गई, तुम्हारे मन में घूमने लगी, तुम्हारी अस्मिता का आधार बन गई। “मैं कौन हूँ? मैं फलानी का मालिक हूँ।” अब मालिक बना रहना है तो क़ीमत अदा करोगे ना? और क़ीमत अब वो उगाह सकती है। यही बात पुरुष पर भी लागू होती है। स्त्री ने अपनी पहचान पुरुष के साथ जोड़ ली, तो अब वो क़ीमत ऐंठ सकता है।

बात इतनी-सी ही है।

पूछ रहे हो — “स्त्री क्या है?”

जिस अर्थ में पुरुष और प्रकृति का निरूपण किया गया है, उस अर्थ में ‘स्त्री’ माया है। इसका अर्थ यह नहीं है कि जो दैहिक स्त्रियाँ हैं, उन्हें माया कहा…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org