स्त्री का पर्दा करना बनाम शरीर की नग्नता

स्त्री का पर्दा करना कहाँ तक उचित है?

आसपास लोग ऐसे हों कि वहशी दरिंदे, तो पर्दा ठीक है।

मुझे पता हो कि यहाँ ऐसे लोग हैं जो मेरा मुँह देख के मुझे नोच लेंगे, तो मैं ही पर्दा कर लूँगा। कौन जान मराए? पर ऐसे लोग हैं क्या घर में, गांव में, शहर में? अगर ऐसे हों कि औरत का मुँह देखते ही उस पर टूट पड़ने वाले हैं, तो कर लो पर्दा पर मुझे नहीं लगता कि ऐसे बहुत लोग हैं।

घर में ऐसे लोग हों कि स्त्री मुँह नहीं छुपाएगी तो लुटेगी, तो कर लो पर्दा पर फिर ऐसे घर में उसको लाए क्यों? ऐसे घर में लाए क्यों जहाँ जानवर बसते हैं? जानवर तो ख़ैर, बेचारों की तौहीन कर दी। कोई जानवर ऐसा नहीं होता कि उसके सामने पर्दा करना पड़े। जानवरों के सामने तो नंगे भी निकल जाओ, तो उन्हें कोई फ़र्क़ नहीं पड़ेगा।

पर्दा की प्रथा ही उन दिनों की है जब आदमी के भीतर कपट और कामुकता ज़बरदस्त चढ़ाव लेने लगे थे।

आदमी जितना सरल होगा, उतना तुम्हें कम ज़रूरत पड़ेगी उसके सामने कुछ भी छुपाने की।

तन तो छोड़ दो, मन भी नहीं छुपाना पड़ेगा।

एक सरल आदमी के सामने तुम पूरे तरीक़े से नंगे हो सकते हो।

तुम उसे जिस्म भी दिखा दो, कोई ख़तरा नहीं और तुम उसके सामने अपने मन की सारी बातें खोल दो, कोई ख़तरा नहीं।

तन-मन सब उसके सामने उद्घाटित कर दो, कोई दिक़्क़त नहीं है।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org