स्त्री और शक्ति || आचार्य प्रशांत

प्रश्नकर्ता (प्र): इस घाट पर, आचार्य जी, ये तीन मूर्तियाँ हैं और इनको देखकर एक जिज्ञासा उठ रही है: जो देवी की मूर्ति है यह इतनी बड़ी है और जब हम ऋषि की मूर्ति देखते हैं तो वह उनके सामने बड़ी छोटी मालूम होती है। देवी, ऋषि से बड़ी हैं यह बात तो फिर भी एक बार को चलिए समझ में आ जाती है, अब जब इधर मुड़ेंगे तो देखेंगे कि देवी शिवजी की मूर्ति से भी तीन गुना बड़ी है। शिवजी तो देव-आदिदेव, महादेव हैं, उनका कद तो सबसे ऊँचा है। देवी कैसे शिव से बड़ी हुई?

आचार्य प्रशांत (आचार्य): तो इसमें तुम्हें अचरज क्या लग रहा है? एक मूर्ति का आकार बड़ा है, दो मूर्तियों का आकार छोटा है, इसमे अचरज क्यों लग रहा है, पहले इसपर गौर करो।

प्र: क्योंकि हमेशा से जब हम राम जी, लक्ष्मण जी, सीता जी और हनुमान जी वाली फोटो देखते हैं तो उसमें अपफ्रंट (सबसे आगे) तो रामजी होते हैं मेन (मुख्य), फिर सीता जी होती हैं, फिर लक्ष्मण जी होते हैं, फिर सेवक या उपासक।

आचार्य: क्यों! मध्य में तो सीता जी होती हैं कई बार।

प्र: जैसे शिव-पार्वती, तो ऐसा लगता है न कि जो देवियाँ हैं वो देवताओं से थोड़ा सेकंड (दूसरे स्थान पर) हैं, पीछे हैं।

आचार्य: तुम्हें अचरज इसी धारणा के कारण लग रहा है न?

प्र: हाँ अबनॉर्मल (असामान्य) है, ऐसा कहीं नहीं दिखता।

आचार्य: नहीं, अबनॉर्मल नहीं है। तुम्हारे मन में यह धारणा बैठ गई है कि भारतीय परंपरा में या मिथोलोजी (पौराणिक कथाओं) में देवियों को, बल्कि महिलाओं को और स्त्रियों…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org