स्त्रियों के लिए कमाना ज़रूरी क्यों?
स्त्री के लिए तो बहुत, बहुत, बहुत ज़रूरी है अपने पाँव पर खड़ा होना। हर चीज़ से समझौता कर लेना, कमाने से मत करना। आदमी के लिए भी ज़रूरी है और औरत के लिए भी — पर लड़कियों के लिए, स्त्रियों के लिए, विशेषतया ज़रूरी है कि वो ज़िन्दगी के किसी भी मुकाम पर, आर्थिक रूप से परनिर्भर ना हो जाएँ। और प्रकृति का खेल कुछ ऐसा है कि आर्थिक रूप से सबसे ज़्यादा पराश्रित स्त्रियों को होना पड़ता है। शादी हो गई तो नौकरी छोड़ दो क्योंकि पति दूसरे शहर में रहता है, लो हो गई बेरोज़गार। हो गई न बेरोज़गार? पति थोड़े ही नौकरी छोड़ता है कभी। नौकरी हमेशा कौन छोड़े? लड़की छोड़े। अब इतना आसान है दूसरी जगह पर नौकरी मिल जाना? गई। अपना व्यवसाय आसानी से वो चला नहीं सकती क्योंकि अपना व्यवसाय चलाने के लिए दौड़-धूप करनी पड़ती है, और मन में ये बात बैठ गई है कि दौड़-धूप करना लड़कियों का काम नहीं।
और अगर दौड़-धूप कर रहे हो तो साथ-ही-साथ घर को भी देखो; दोगुना बोझ लो। जब दोगुना बोझ रहेगा तो बाहर सफलता मिलने की संभावना कम हो जाएगी। सफलता ना मिले तो ठप्पा लग जाएगा कि — “इन से बाहर का कोई काम तो होता नहीं, चलीं थीं बहुत फन्ने खां बनने। लो, पैसा भी डुबो दिया, असफलता भी मिली।” और उसके बाद अगर मातृत्व आ गया तो महीनों-महीनों तक घर पर बैठो। वो भी ज़िंदगी में एक बार नहीं, हो सकता है दो बार, चार बार। अब बैठे रहो घर पर। और एक बार घर पर बैठ जाओ, कुछ महीने, या कुछ साल, तो उसके बाद अपनी जो तीक्ष्णता होती है, या शार्पनेस (धार) होती है, वो भी कुंद हो जाती है। तलवार को जंग लग जाता है, फिर बाहर निकलने का खुद ही मन नहीं करता। एक बार तुम्हारा गृहिणी बनने में मन लग…