सोता सपना

आज

तुम सोती हो

यहाँ मेरे सामने

मैं

तुम्हें बहुत ध्यान से देख रहा हूँ

तुम जानोगी भी नहीं

कि

तुम्हारी आँखों में नींद है

और मेरी आँखों में

तुम्हारे लिए

सपने ।

आज

बुरा होकर भी

बहुत अच्छा है

क्योंकि

कल आज में ही तो छुपा है ।

मैं नहीं जानता’

कल तुम मेरे सामने

सोओगी कि नहीं

मैं नहीं जानता

कल मैं लिखूंगा कि नहीं

मैं नहीं जानता

सपने सच होंगे या नहीं

और सच सपनों के

केंद्र में तुम

तुम होगी या नहीं।

कल सिर्फ़ मेरा हो सकता है

कल सिर्फ़ तुम्हारा भी

पर कल

मेरी आँखों का होगा या नहीं

मैं नहीं जानता

यानी कि

सच पूछो तो

मैं कुछ भी नहीं जानता।

पर रात का यह वक्त,

हाथ में कलम

लिखे जा रहे शब्द

और अकेला मैं

इतना तो कहते ही हैं

कि

जानू मैं

इंतज़ाम हो चुका है

कल के

दर्द का ।

~ प्रशान्त (१३.०७.९८)

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org