सोच-सोच कर देखा तो क्या देखा

प्रश्नकर्ता: इसका क्या मतलब है कि, “ट्रू ऑब्ज़रवेशन इज़ विदाउट थॉट(असली अवलोकन बिना विचार के होता है)”? इसको कृष्णमूर्ति बहुत बार कहते हैं कि, “ट्रू ऑब्जरवेशन इज़ ऑलवेज़ विदाउट थॉट।”

आचार्य प्रशांत: सोच-सोच के कुछ भी देख कैसे सकते हैं? थॉट विल एनलाइज़, थॉट विल नॉट ओब्ज़र्व, थॉट विल नॉट ओब्ज़र्व (विचार विश्लेषण करेगा, विचार अवलोकन नहीं करेगा। और जब ऑब्ज़रवेशन(अवलोकन) की बात हो रही है, तो हम एक शब्द का इस्तेमाल कर रहे हैं — ‘देखना’।

तीन तल होंगे देखने के। एक तल तो ये है कि मन विचारों से इतना भरा हुआ है, स्मृतियों से इतना अच्छादित है कि, “मैं देखूँ इस दीवार को, और मुझे दीवारों से जुड़ी हुई तमाम घटनाएँ याद आ जाएँ। ये दीवार को देखने का निम्नतम तरीका है। अब दीवार कुछ दिख ही नहीं रही है।

या मैं देखूँ एक चेहरे को, और उस चेहरे से जुड़ी हुई, या उससे मिलते-जुलते चेहरों से जुड़ी हुई पाँच-सौ घटनाएँ कौंध गईं। अब कुछ दिखा नहीं है। समझ रहे हो ना? सुना है कुछ, और तुरंत अतीत से उसका संपर्क बना लिया, और वो पूरा एक किस्सा चालू हो गया। और वो जो रैंडम एसोसिएशन (निर्रुदेश्य संपर्क) होता है, इससे ये जुड़ा, उससे वो जुड़ा, और पूरी एक लम्बी श्रृंखला विचार की चालू हो गयी, ये देखने का निम्नतम तरीका है।

उसके बाद ये है कि चेहरा देखा, तो चेहरा-चेहरा ही है। हम कह रहे हैं, “व्यक्ति को व्यक्ति की तरह देखा।” हम आमतौर पर जब अपने छात्रों से बात करते हैं, तो उनको यहीं तक ले आते हैं। हम कहते हैं, “नहीं, व्यक्ति को पहचान और नाम के रूप में नहीं देखो, व्यक्ति को ‘व्यक्ति’ के जैसा देखो।” यहाँ पर हमने चाहा है कि कम से कम अतीत बीच में खड़ा न रहे। लेकिन यहाँ भी बात पूरी नहीं है, क्योंकि यहाँ पर भी जब आप कह रहे हो कि — “व्यक्ति को देखो,” तो ‘व्यक्ति’ माने क्या? ‘व्यक्ति’ माने एक आकार, ‘व्यक्ति’ मतलब वो जो इन्द्रियों से भांसित हो रहा है। ‘व्यक्ति’ माने क्या?

जब आप कहते हो, “मुझे एक चेहरा दिख रहा है,” तो ‘चेहरा दिख रहा है’, ये नाम तो दे दिया ना कि ये ‘चेहरा’ कहलाता है।अतीत अभी भी है, सूक्ष्म रूप में मौजूद है, पर अभी भी है। आप इतना तो कहोगे कि पुरुष है, या स्त्री है’, अतीत अभी भी है। आप इतना तो कहोगे कि इसके आँखें हैं, मुझे देख रहा है, या इधर-उधर देख रहा है, अतीत अभी भी है। समझ रहे हैं ना? जो मेकनिक्स (प्रक्रिया) है मन की, वो अभी भी काम कर रही है। बहुत ज़ोर से नहीं काम कर रही है, चिल्ला-चिल्ला कर नहीं कर रही है, पर दबे-छुपे तो कर ही रही है।

तो फिर देखने का एक तीसरा तल भी है, जिसको ‘अतीन्द्रिय’ तल कह सकते हैं, कि आँखों से नहीं देखा। देखा, पर आँखों से नहीं देखा। इस तल से जो देखा जाता है, उसका देखे जाने वाले विषय से…

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org