सोचो ज़रूर, पर सोचते ही मत रह जाओ
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आचार्य प्रशांत: तुमने कहा कि अगर मैं यहां बैठा भी हूं, तो कुछ सोच रहा हूं; अतीत का। और मुझे लग रहा है कि यदि ऐसा ना किया होता, तो अभी जो होता है, अभी जो रहा है, वो थोड़ा अलग होता। है ना? तो तुम कह रहे हो कि अभी यहां होकर भी मन में विचार तो अतीत का ही चल रहा है। उसमें कोई दिक्कत ही नहीं है। नहीं, तुमसे ये नहीं कहा जा रहा है कि अतीत को लेकर मन में कोई विचार ना उठे।
तुम्हें एक बड़ी मज़ेदार बात बताता हूं। तुमने कहा, ‘अतीत का विचार चल रहा है’। मैं तुमसे कहता हूं, हर विचार कहीं ना कहीं अतीत का ही होता है। अतीत ना हो, तो विचार आएगा कहां से? ये बात समझ लेना। हर विचार या तो अतीत का होगा, या भविष्य का होगा। और कहां के होते हैं विचार? विचारों में कोई गड़बड़ नहीं है। कोई अपराध नहीं हो गया अगर मन में कोई सोच उठ रही है। बस एक बात का ख्याल रख लेना कि ऐसा मत सोचना कि सोचते ही रह गए। अनंत रूप से मत सोचना शुरू कर देना कि प्रोग्राम की एक लाइन बोल रही है, अगली पंक्ति पर जाओ, और अगली पंक्ति बोल रही है पिछले पंक्ति पर वापिस जाओ। अब ये लगातार चलता रहेगा। और यही हमारी हालत रहती है।
हमारा विचार तो उठता है, पर कभी ख़त्म नहीं होता। हमें उसी में सुख मिलना शुरू हो जाता है। ये क्या कर रहे हैं? ये पेशेवर विचारक हैं। ये दिन-रात मात्र सोचते हैं। देखे हैं ऐसे लोग? वो एक ही बात को पांच-सौ बार सोचते हैं। और कहीं आगे नहीं बढ़ रहे। एक ही वर्तुल है, एक ही घेरा है, वो उसी में गोल-गोल घूम रहे हैं, और पांच-सौ बार घूम रहे हैं। एक ही कमरा है, उसके पांच-सौ चक्कर लगा रहे हैं, जैसे कि कहीं नई जगह पहुँच जाएंगे वो। वही चक्कर लगा-लगा कर, उनकी उम्मीद है कि कहीं और पहुँच जाएंगे वो। कैसे पहुंच जाओगे?
विचार आदमी के मन को मिली हुई बड़ी महत्वपूर्ण ताकत है; और विचार होता है अतीत का या भविष्य का ही, इसमें कोई शंका नहीं। सोचो, लेकिन सोचते वक्त ये ध्यान रहे कि इस सोच को अब ख़त्म भी हो जाना चाहिये। गहराई से सोचो, बल्कि गहराई से सोचना तो ध्यान की शुरुआत है।
ध्यान की शुरुआत जानते हो कहां से होती है? गहरी ताकतवर सोच से। हां, वो जब सोच परिपक्व हो जाती है, तो घुल जाती है, खत्म हो जाती है। तब तुम कहते हो कि अब मैं, पूरे ध्यान में हूं, अब सोचने की जरुरत ही नहीं, फिर तुम उसको कहते हो, ‘विचारशून्य ध्यान’। पर विचारशून्य ध्यान की भी शुरुआत तो विचार से ही होती है। तो, विचार बड़ी प्यारी शक्ति है जो तुम्हें उपलब्ध है। उसमें भूल में मत पड़ जाना कि मैं सोचता क्यों हूं। बहुत अच्छी बात है कि तुम सोचते हो। पर सोचो, और सोच कर मामले को जल्दी से ख़त्म करो। सोचते ही मत रह जाओ। विचार, समझ लो एक लिफ्ट की तरह है, ‘एलीवेटर’। वो तुमको निचले तल से ऊंचा ले जाएगा, ऊंचे से ऊंचा, जहां जाना…