सोचिये खूब, पर श्रद्धा में
देखो सोचने-सोचने में अंतर है। एक सोचना ये है कि, समझना है यहाँ पर इस बात को। हम यहाँ बैठे हैं, कोई आफत आ गई। मुझे पक्का है कि मेरा कुछ बिगड़ नहीं सकता, लेकिन अब आफत आयी है तो सोचना पड़ेगा कि इसका करना क्या है। पाँच विकल्प हो सकते हैं, थोड़ी जानकारी चाहिये होगी, किसी से बात करनी पड़ सकती है, दो-चार फ़ोन घुमाने पड़ सकते हैं। पर इस पूरी प्रक्रिया में मेरे भीतर ये श्रद्धा पूरी है कि कुछ बिगड़ नहीं सकता। मैं कर तो रहा हूँ, मैं सोच भी रहा हूँ कि अब अगला…