सेक्स की लत का क्या इलाज?

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, सेक्स की लत का क्या इलाज़ है?

आचार्य प्रशांत: इसका होना — किसी भी चीज़ का होना — जिसको आप निकृष्ट समझते हैं या गलत समझते हैं उतनी बड़ी समस्या नहीं है जितना कि उसको गंभीरता से ले लेना। तुम अपने-आपको बहुत महत्व देते हो, तुम अपने-आपको न जाने क्या समझते हो! तुमने अपने-आपसे न जाने क्या उम्मीदें लगा रखी हैं! तुमसे जब भूल-चूक होती है तो तुम्हें लगता है न जाने कैसा दाग़ लग गया हमारे रौशन चेहरे पर और फिर तुम बिल्कुल परेशान हो जाते हो, व्यथित हो जाते हो, इतना गंभीर हो जाते हो कि पूछो मत।

जो इस तरफ़ है, वो सब कुछ जो आवत-जावत है, वो जो तुम्हारा तात्कालिक जीवन है, वहाँ तो सौ तरह की ऊँच-नीच लगी ही रहेगी, वहाँ से तुम उम्मीद ही क्यों करते हो कि तुम बड़ा शुद्ध, परिष्कृत जीवन जिओगे। शुद्धता और परिष्कार जहाँ हैं वहाँ तुम देख नहीं रहे। आत्मा और अहंकार हमने कहा - दो हैं; तुमने अहंकार से वो उम्मीदें लगा ली हैं जो आत्मा से लगानी चाहिए, वो उम्मीदें तुम्हारी पूरी हो नहीं रहीं तो तुम परेशान घूम रहे हो। आत्मा अमर है, तुम चाहते हो अहंकार अमर रहे, अब वो अमर बेचारा रह नहीं पाता। वो तो बात-बात में चोट खाता है और उसको अपने मरने का ही भय सताता है।

अरे! इधर (अहंकार की तरफ़) अगर कुछ टुच्चा-घिनौना चल रहा है तो और इधर क्या चलेगा? जो उस तरफ़ (आत्मा की ओर) है उसका ख्याल रखो न, वहाँ नहीं कुछ होता। इतने लंबे-चौड़े वक्तव्य की आवश्यकता क्या थी? ये वक्तव्य बस ये दर्शाता है कि तुम माने बैठे थे कि तुम कुछ और करोगे। तुम, तुम रहते हुए कुछ और हो पाओगे, वो हो नहीं पाने वाला। बिल्ली…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org