सुन्दर लड़की के सामने छवि बनाने की कोशिश

मान लो, कोई चार गाली सुनाए, उससे तुम्हारा स्वार्थ बहुत है और वो चार गाली सुनाए तो तुम कहते हो कि “नहीं, अब हमारा ज़मीर जाग गया है, कुछ नहीं चाहिए तुझसे, चला जा यहाँ से”, क्योंकि उसने चार गाली सुनाई हैं। तो साधना ये है कि अगली बार जब तीन सुनाए तभी कह देना, “तू जा!” उसके अगली बार दो में ही कह देना कि, “नहीं, जा!” उसके अगली बार एक में और उसके अगली बार उस व्यक्ति और उस जैसे व्यक्तियों के आसपास नज़र ही मत आओ। ले देकर बात इतनी सी है कि झेलना बन्द करो, बहुत झेलते हो। हम बड़े मज़बूत लोग हैं, रोज़ पिटते हैं, रोज़ झेलते हैं; हमारी सहिष्णुता, हमारी सहनशीलता भगवान की माया की तरह अनंत है, अपरंपार! कोई कहता है न कि इस संसार में कुछ भी असीम नहीं है, कैसे नहीं है? हमारा धैर्य देखो, रोज़ पिटते हैं और अगले दिन पिटने के लिए फिर हाज़िर हो जाते हैं, “जी जनाब!” अनंत धैर्य कैसे नहीं है हमारा! है ही है। आख़िरी साँस तक पिटेंगे और पिटते ही रहेंगे। कम धैर्य रखो। बेवकूफ़ी को, उदंडता को, शोषण को ‘ना’ बोलना सीखो और जल्दी ‘ना’ बोलना सीखो, बहुत इंतज़ार, बहुत बर्दाश्त मत किया करो। अरे, यहाँ तो धड़कन तेज़ हो गई! अरे, ‘ना’ ही तो बोलना है।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org