सुन्दर युवती के प्रति आकर्षण

“या तो पापनाशक जल वाले गंगा तट पर निवास करें
या फ़िर मनोहर हार वाले तरुणी स्त्री के वक्षस्थल पर।”
~(श्रृंगार शतकम्, श्लोक ३०)

आचर्य प्रशांत: कमलेश कह रहे हैं, “तीसवाँ श्लोक बहुत अच्छा है, बता दीजिए।’’

कमलेश! (प्रश्नकर्ता की तरफ देखते हैं)

(सभाजन हँसते हैं)

कह रहे हैं कि, “या तो पापनाशक जल वाले गंगा तट पर निवास करें या फ़िर मनोहर हार वाले तरुणी स्त्री के वक्षस्थल पर।” ये बात उन्हीं दिनों बोली जा सकती है जिन दिनों नशा बहुत हावी हो। जब नशा बहुत हावी हो तो बिलकुल वही बोला जाएगा जो इस श्लोक में भर्तृहरि ने बोला है और मैं कह रहा हूँ कि यही व्यक्तव्य दुनिया के हर कामी आदमी का है। करा क्या है यहाँ पर भर्तृहरि ने देखो कह रहें कि, “या तो गंगा तट पर निवास करो!” यही कहा है न? या तो शुद्ध पापनाशक जल वाले गंगा तट पर निवास करो या मनोहर हार पहने जवान स्त्री के वक्षस्थल पर, सीने पर, स्तनों पर।

ये वो क्या कर रहे हैं देखो! वो दोनों को बराबर ठहरा रहे हैं। वो कह रहे हैं कि शिव से बहती गंगा और किसी जवान स्त्री का यौवन एक ही बात है। कामवासना यही धोख़ा देती है। वो आपको स्तवन से हटाकर स्तन पर ले आ देती है। वो आपको मौन से हटाकर यौन पर ले आ देती है। वो कहती है मौन और यौन अगल-बगल की बातें हैं। जैसे यहाँ पर भर्तृहरि ने कहा है, “या तो ये या फ़िर ये।” जैसे कि दोनों बातें एक बराबर हों। “भैया! या तो आलू दे देना या टिण्डा दे देना”, एक ही तो बात है!

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org