सुनना ही मोक्ष है
सुणि सुणि मेरी कामणी पारि उतारा होइ ॥२॥
(श्री गुरू ग्रन्थ साहिब जी, अंग ६६०)
वक्ता: सुणि सुणि मेरी कामणी पारि उतारा होइ|
सुन-सुन कर मैं पार उतर गयी| सुन-सुनकर पार उतर गयी| (‘सुन’ शब्द पर ज़ोर देते हुए)
क्या अर्थ है इसका? सुन-सुनकर तर गयी|
सुनने का अर्थ है- निर्विकल्प भाव से सुनना| आँखों के पास हमेशा विकल्प होता है, आँखों के पास…