सुख मन को क्यों भाता है?
प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, आपने पहले कहा कि चेतना को पूर्णता चाहिए यानि सत्य चाहिए, वो बिंदु चाहिए। लेकिन चेतना छली जाती है, यानि कि सुख से छली जाती है एक तरह से। तो उस सुख में ऐसा क्या है जो सत्य जैसा प्रतीत होता है?
आचार्य प्रशांत: दुःख का अभाव। मुक्ति में और सुख में जो एक चीज़ साझी है वो है दुःख की अनुभूति की अनुपस्थिति। मुक्ति में भी दुःख नहीं है और सुख में भी दुःख नहीं है, लेकिन अंतर बड़े हैं। अंतर ये है कि मुक्ति में दुःख और सुख दोनों से मुक्ति है।
मुक्ति में दुःख और सुख दोनों से पूर्ण और सतत मुक्ति है। सुख में कुछ समय के लिए दुःख की अनुभूति भर स्थगित हो जाती…