सुंदरता — बात नाज़ की, या लाज की?

प्रश्न: सर, आप हमेशा शारीरिक सुंदरता को नीची नज़र से देखते हैं। मैं सुंदर और आकर्षक हूँ। पुरुष मेरी ओर ख़िचते हैं और मुझे इस बात पर नाज़ भी है। सुंदर होना कोई अपराध तो नहीं? पर आपको सुनती हूँ तो ऐसा लगता है जैसे सुंदर होकर मैंने कोई गुनाह कर दिया हो।

आचार्य प्रशांत: सवाल तो कुछ पूछा नहीं, मेरा गुनाह गिना दिया।

कौन-सी चीज़ सुंदर है? सुंदरता माने, किसकी सुंदरता? तुम जब कह रही हो — “मैं सुंदर हूँ,” माने क्या सुंदर है? कौन सुंदर है? वो सामने एक स्वयंसेवक बैठा है, उसका चश्मा सुंदर है या उसकी टूटी कलाई सुंदर है? ‘मैं’ माने, कौन है जिसकी सुंदरता की बात कर रही हो? और मैं कोई यूँ ही किताबी-सैद्धांतिक बात नहीं कर रहा, जल्दी से ऊबने मत लग जाना। सुंदरता माने, किसकी सुंदरता? सुंदरता हर तल पर अच्छी होती है, पर आप बात किस तल की कर रही हैं?

अच्छा चलो ठीक है, मैं इस कैमरे के सामने बैठा हूँ, ठीक है न? आप से बात कर रहा हूँ। ये कोई बुरी बात तो नहीं है कि ये माइक सुंदर है? बात तो अच्छी ही है अपने आप में कि माइक सुंदर है। देखो कितना सुगढ़ है। यही आड़ा-तिरछा होता, अजीब-सा लग रहा होता, इसका यहाँ प्लास्टिक गिर रहा होता, या इसका तार उड़ा हुआ होता, तो कुछ बात बनती नहीं न? या इसका रंग उड़ा हुआ होता, आधा पीला आधा लाल हो रहा होता। तो अच्छी बात है कि एकदम तराशा हुआ सा इसका आकार है, और सुंदर है ये माइक, ठीक है? माइक का सुंदर होना अच्छी बात है। पर यहाँ मैं नहीं हूँ और बस एक सुंदर माइक है, तो कैसा लगेगा तुम्हें? इस कुर्सी पर मैं नहीं हूँ और सुंदर माइक है, कैसा लगेगा तुमको…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org