सीता का मार्ग, और हनुमान का मार्ग
प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, जब सीता और हनुमान दोनों ही राम तक पहुँचने के मार्ग हैं, तो इनमें मूलभूत रूप से क्या अंतर है?
आचार्य प्रशांत: एक है अपने को मिटा देना, और दूसरा है अपने को मिला देना।
मिटा देना ऐसा है कि जैसे कोई सपने से उठ गया हो, मिला देना ऐसा है कि जैसे नमक का ढेला पानी में घुल गया हो। अहंकार के लिए दो ही जगहें हैं: या तो सत्य के पाँव में, या सत्य की बाहों में। या तो पाँव पड़ जाओ, या गले मिल जाओ— दोनों ही समर्पण के मार्ग हैं। दिख जाए तुम्हें कि कुछ है जो तुमसे बहुत-बहुत बड़ा है, तो भी अहंकार गिर जाता है। तुम्हें दिख जाता है कि कुछ है जो…