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सीख पाना मुश्किल क्यों?

प्रश्न: मैं आपकी सभी बातें पूर्ण रूप से ग्रहण नहीं कर पाता, मैं क्या करूँ?

आचार्य प्रशांत: तुम फँस इसीलिए जाते हो क्योंकि तुम्हें तकलीफ़ सिर्फ तब होती है जब ऊँचे काम खराब होते हैं, कि ऊँचा काम हो रहा था और मैं किसी निचले केंद्र में ही अटक के रह गया।

नहीं नहीं।

बड़ी-बड़ी बातों में असफल रहो तो छोटी बातों की ओर ध्यान दो। बड़ी बात चल रही है और उसमें तुम शिरकत करने आये और तुमने पाया कि मेरा तो मन छोटा है, तो, ये बात उस क्षण की है ही नहीं। ये गलती उस क्षण में नहीं हुई है, ये अभ्यास पुराना है। छोटी-छोटी बातों में सतर्क रहोगे तो बड़ी बातों में दिक्कत नहीं होगी।

अब यहाँ बैठ कर के मान लो मैं बोल रहा हूँ, तो ऐसा लगता है जैसे ये बड़ा आयोजन है, ये बड़ी बात है। और इस वक्त अगर तुम पाओ कि तुम ठीक से नहीं सुन पा रहे हो, या तुम्हारा केंद्र अभी भी ओछा है, तो उसकी वजह ये थोड़े ही है कि ठीक अभी कोई गड़बड़ हो गयी है। मैं इस वक्त जो बोल रहा हूँ तुम उसे वास्तव में सुन पाओ और तुम उससे लाभान्वित हो पाओ, वो इस पर निर्भर करेगा कि दिन भर मैं तुम्हारी नज़र में क्या रहा हूँ। अगर दिन भर तुम मुझे वहीँ नहीं रख रहे जहाँ इस वक्त रखना चाहिए, तो इस वक्त भी तुम मुझे वहाँ नहीं रख पाओगे जहाँ इस वक्त रखना चाहिए।

इसीलिए, अब इसी दिशा में आगे बढ़ रहा हूँ।

गुरु की उपस्थिति सबसे बड़ा अनुशासन होती है। उपस्थिति भी, अनुपस्थिति भी। जब वो गुरु सा आचरण न कर रहा हो, उस वक्त अगर ढीले पड़ गए, तो तुम उस क्षण से भी चूक जाओगे जब वो गुरु सा आचरण कर…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant
आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

Written by आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

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