सिर्फ़ ऐसे बच सकते हो अवसाद (डिप्रेशन) से

प्रश्नकर्ता: प्रणाम आचार्य जी, 2011 के आसपास मुझे डिप्रेशन की समस्या हुई थी। उस समय घर में अशांति की वजह से मानसिक संतुलन थोड़ा ख़राब हो गया। एकदम से 'डर' आ गया जीवन में, और उसके बाद से वैसे ही चल रहा है। डर एकदम से हावी होता ही रहा, और उसी समय से गड़बड़ियों ने भी हावी होना शुरु कर दिया। फिर कुछ लोगों से पता चला कि 'योग' करो, तो ख़ूब योग किया। कोई बोल रहा है साँस का मेडिटेशन करो; कोई बोलता है कानो में एक आवाज़ आ रही है, उसका ध्यान करो। ख़ूब किया। कोई बोलता है काम नहीं कर रहा है, काम करो। काम भी कर रहे हैं, लेकिन वहाँ कुछ नहीं हो रहा है जहाँ होना चाहिए।

आचार्य प्रशांत: 7-8 साल पहले, कुछ पारिवारिक स्थितियों के कारण डिप्रेशन में चले गए थे। उसके बाद तरीक़े-तरीक़े से ध्यान आदि के प्रयोग करें लेकिन कुछ फायदा नहीं दिख रहा है, ये है कहानी?

प्रश्नकर्ता: जी।

आचार्य प्रशांत: इस पूरे प्रसंग में ये बताया ही नहीं कि परिवार का क्या किया, जिनकी वजह से डिप्रेशन में चले गए थे? ये ऐसी-सी बात है कि "आचार्य जी, 7 सालों से पीठ पर जोंक चिपकी हुई थी, तो उससे बाद से मैंने काला-खट्टा, बुढ़िया के बाल, शम्मी-कबाब, ये सब भाँति-भाँति के खाद्य पदार्थ आज़मा कर देखे हैं लेकिन कुछ लाभ नहीं हुआ।" पीठ पर जोंक चिपक गई थी, तो मैंने चॉकलेट आइसक्रीम खाई। उससे लाभ नहीं हुआ, तो फिर मैंने सड़क से वो बुढ़िया के बाल खाई। बुढ़िया के बाल जानते हो न? अरे, वो बुढ़िया के बाल नहीं; वो जो बेच रहे होते हैं (गुलाबी)—कहीं कोई सोच रहा हो कि बुढ़िया के बाल खा गए। फिर बताओ, "जोंक चिपकी…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org