साहसी मन समस्या को नहीं, स्वयं को सुलझाता है

एक साहस होता है जिसका कारण होता है। और एक दूसरा साहस होता है जिसका कोई कारण नहीं होता। जीवन जीना है तो उस साहस में जिया जाए जो अकारण है।

वही है स्रोत, वहीं से आता है असली साहस, और कहीं से नहीं आ सकता। मात्र धार्मिक मन ही लड़ सकता है। ये तो हम सब जानते ही हैं कि मात्र धार्मिक मन ही प्रेम में उतर सकता है, मैं आपसे कह रहा हूँ कि मात्र धार्मिक मन ही युद्ध कर सकता है। जो ये कपटी मन है, ये न प्रेम कर सकता है, न खड्ग उठा सकता है। इससे कुछ नहीं होगा। न ये प्रेम कर पायेगा, न ये तलवार उठा पायेगा। क्योंकि दोनों पूरे तरीके से साहस के काम हैं।

धर्म महाप्रेम भी है और धर्म महायुद्ध भी है। जो सोचते हों कि युद्ध नहीं करना है वो कृपा करके प्रेम की भी अभीप्सा न करें। उपलब्ध नहीं होगा उनको प्रेम, जो संघर्षों से बचते हों -और संघर्षों से बचेगा कौन? कौन चाहेगा बचना? जिसमें आत्मबल की कमी होगी। अन्यथा कौन भागता है संघर्षों से- आओ, हम तैयार खड़े हैं। जीवन द्वैत है और द्वैत का अर्थ ही है संघर्ष। हम जीवन के लिए पूरी तरह प्रस्तुत हैं, आओ। हमारी सांस-सांस यलगार है, आओ। हमें तो लड़ना ही नहीं है। हम तो हमेशा जीत में खड़े हैं। हम हमेशा सत्य में खड़े हैं और सत्यमेव जयते। उसके अलावा और जीता कौन है आज तक? तो हम हार कहाँ से सकते हैं? कौन-सी चुनौती है, लाओ। ये होता है अकारण साहस। आप उसका कोई कारण नहीं पाएँगे।

कोई आकर आपसे पूछेगा- अकड़ किस बात पर रहे हो इतना? आप कहोगे- पहली बात तो हम अकड़ ही नहीं रहे, दूसरी बात कोई बात ही नहीं है। न अकड़ है, न अकड़ का कारण है। एक…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org