सारे धर्मों के त्याग के बाद क्या?
प्रस्तुत लेख आचार्य प्रशांत के संवाद सत्र का अंश है।
कृष्ण कौन है? क्या कृष्ण, जो अर्जुन के दायरे के भीतर जो अनेका-नेक धर्म हैं, उन्हीं धर्मों में से कोई और नया धर्म है? अर्जुन का दायरा क्या है? अर्जुन का दायरा संसार है, भाषा है, अर्जुन का दायरा भाषा है। अर्जुन का दायरा पूरी मानवता है, हम सब हैं। कृष्ण कह रहे हैं - उसको छोड़।
कृष्ण कह रहे हैं - ‘उसको छोड़’। फिर आगे तीन शब्द और लगा देते हैं - ‘मेरे पास आ’।
‘अब मेरे पास आ’, क्या वैसा ही है कि उस खम्भे के पास जा, उस पेड़ के पास जा, उस तालाब के पास जा, उस मंदिर के पास जा, उस पुजारी के पास जा, उस शास्त्र के पास जा? उन सब को तो कृष्ण ने छोड़ने को बोल दिया है। कृष्ण ने कहा है- ‘सर्वधर्म’। जितने धर्म तू जान सकता था। जितने धर्म मानव कृत हो सकते थे, जितने धर्म तेरे दिमाग में आ सकते थे, उन सब को तो तू छोड़ दे। तो उन सब को तो छोड़ दिया। अब बचा कौन? क्या अर्जुन भी बचा? वो सब कुछ छोड़ते ही क्या बचा?
प्र: कृष्ण।
आचार्य प्रशांत: तो कृष्ण यह दूसरी बात कह रहे हैं, वो न भी कहते तो चलती। कृष्ण ने यह नहीं कहा है कि सब कुछ पुराने पाँच दस छोड़कर, अब छठे और ग्यारहवें में आ जा। कृष्ण ने कहा है- ‘’सर्व - सब कुछ।’’ सब कुछ माने - अर्जुन की पूरी हस्ती। “छोड़ वो सब कुछ जो तू है, तेरे दिमाग में हो सकता था। उसको भी छोड़ दे जो कहीं जाता।’’ कह ज़रूर रहे हैं कि मेरी शरण में आजा। पर वो आएगा कैसे? क्यूँकी आने के लिए अर्जुन शेष तो बचना चाहिए। जब सारे धर्म छोड़ दिए अर्जुन ने तो अर्जुन…