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सारा संसार कहाँ से आया? कहाँ को जा रहा है?

आचार्य प्रशांत: हम एक भूत, माने एक पदार्थ की उत्पत्ति का कारण सदा दूसरे पदार्थ को मानते हैं और बात निपटा देते हैं। भूत माने मैटेरियल, भौतिक पदार्थ। जब आप एक भूत की उत्पत्ति का कारण दूसरे भूत को मानते हो और दूसरे की उत्पत्ति की वजह तीसरे को मानते हो, तो इसी को कहते हैं भौतिकता या मैटेरियलिस्म। आप कहते हो ये जो सब कुछ है अपने आप से ही आया है। एक चीज़ कहाँ से आई है? दूसरी चीज़ से। तो दुनिया में जो कुछ भी है वो कहाँ से आया है? दुनिया के भीतर की ही किसी चीज़ से आया है।

ये ही नियम हम अपने ऊपर भी फिर लागू करते हैं। 'मैं कहाँ से आया हूँ? मैं अपने माँ-बाप से आया हूँ'। बात ख़त्म हो गई। इससे आगे की जिज्ञासा करने के लिए जो मानसिक ऊर्जा चाहिए और जो छटपटाती हुई ईमानदारी चाहिए, वो हम कभी दिखाते नहीं। हम सस्ते जवाब से संतुष्ट हो जाते हैं और सस्ता जवाब हमारा ये ही होता है दुनिया की कोई भी चीज़ दुनिया से ही आई है। तो पूरी दुनिया ही कहाँ से आई, ये हम नहीं पूछते कभी फिर।

'मैं अपने माँ-बाप से आया हूँ, वो अपने माँ-बाप से आए हैं'। सबका बाप कौन है? पहला वाला कहाँ से आ गया? ये हम कभी नहीं पूछते। बहुत अगर हम बौद्धिक चपलता दिखाते हैं तो इतना कह जाते हैं कि, "नहीं साहब, हम पहले बन्दर थे, बन्दर पहले ये था, फिर वो ये था, फिर वो ये था, और सबसे पहले एक प्राणी आया था मात्र एक कोशिका का।" वो एक कोशिका कहाँ से आ गई? "वो पानी से आई थी, पानी से।" पानी में कहाँ से आ गई? "वो पानी में तमाम तरह के केमिकल्स थे, पॉलीमर्स थे वो इकट्ठा हो गए। फिर उन पर सूरज की धूप पड़ती रही। तो वो जो मिक्सचर था…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant
आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

Written by आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

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