सांसारिक लक्ष्यों के लिए अध्यात्म का उपयोग

प्रश्न: आचार्य जी, पढ़ाई-लिखाई में मन नहीं लगता है। कक्षा में जब पढ़ाई-लिखाई होती है, तो ध्यान पढ़ाई से भटकता रहता है। कक्षा छोड़कर, बाहर मैदान में खेलता ही रहता हूँ। इस कारण मेरे अंक भी कम आते हैं। ध्यान भटकता रहता है, और बहुत आलस भी रहता है। आपके वीडियोज़ लम्बे समय से देखता हूँ, जिनसे थोड़ा परिवर्तन आया है। लेकिन पढ़ाई में मन अभी भी नहीं लगता है। आपके सामने बैठता हूँ तो अच्छा लगता है, मन को शांति मिलती है।

यहाँ आश्रम आने के लिये जो संसाधन लगते हैं, वो परिवारवालों से माँगने पर सहयोग नहीं मिल रहा है। ऐसी परिस्थिति में क्या करूँ?

आचार्य प्रशांत: इनकी गाड़ी की क्लच-प्लेट ख़राब है, इसमें अध्यात्म क्या करेगा? तुम्हारा पढ़ाई में अगर मन नहीं लगता है, तो इसमें अध्यात्म क्या करेगा? नहीं लगता, तो नहीं लगता। अध्यात्म क्या करेगा इसमें? (सामने बैठे श्रोता की ओर इंगित करते हुए) इन्हें मैगी-नूडल्स नहीं अच्छा लगता, इसमें अध्यात्म क्या करेगा? अब वो कहें, “आचार्य जी, मैगी-नूडल्स नहीं अच्छा लगता,” तो? तत्व-बोध पढ़कर मैगी-नूडल्स थोड़े ही अच्छा लगने लगेगा।

अध्यात्म का पढ़ाई-लिखाई से क्या सम्बन्ध है? तुमसे किसने कह दिया कि दुनिया जिन कामों को श्रेष्ठ समझती है, उन कामों की पूर्ति के लिए अध्यात्म सहायक हो जाएगा? आधे से ज़्यादा आध्यात्मिक लोग बे-पढ़े लिखे थे, और तुम कह रहे हो कि सत्संग करके मेरा पढ़ाई में मन लगने लगेगा। ऐसे ही जो यू.पी.एस.सी. की तैयारी कर रहे होते हैं, वो आते हैं, “आचार्य जी, आशीर्वाद दीजिए।”

(हँसी)

इसमें आचार्य जी क्या कर सकते हैं? पता नहीं क्या भ्रम चल रहा है कि उपनिषद पढ़कर आई.ए.एस. बन जाएँगे।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org