सांसारिक ज्ञान अधिक ज़रूरी या आध्यात्मिक ज्ञान?
सांसारिक और आध्यात्मिक ज्ञान अलग-अलग नहीं है। असल में जिसको आध्यात्मिक ज्ञान भी कहते हो वो क्या है? वो बस मन की खोजबीन, जाँच-पड़ताल का नाम है। तो ऐसे समझ लो कि जैसे मुक्ति की दो आवश्कताएँ हो क्योंकि हम द्वैत में फंसे है। एक सिरे पर हम को बांधा हुआ है उसने जिसे संसार कहते हैं, और दूसरे सिरे पर हम बंधे हुए हैं उससे जो संसार से बंधा रहना चाहता है, जो संसार की ओर आकर्षित होता है। जिसे मुक्ति चाहिए उसे इन दोनों को देखना पड़ेगा, संसार को भी देखना पड़ेगा और मन को भी देखना पड़ेगा। मुक्ति जिसे चाहिए उसे इन दोनों की ही खोजबीन करनी पड़ती है।
इसीलिए तो मैं बार-बार बोलता हूँ — विज्ञान और अध्यात्म। विज्ञान इसलिए ताकि तुम्हें जगत की हकीकत पता रहे, भौतिक पदार्थ का यथार्थ तुमको पता रहे। और अध्यात्म ताकि तुमको मन का ज्ञान रहे। इन दोनों का ही पता होना चाहिए।
वास्तव में विज्ञान के जितने केंद्र हैं उनमें अध्यात्म का विभाग होना चाहिए। और जितने भी आश्रम है, आध्यात्मिक केंद्र हैं, उन सब में अनिवार्यतः विज्ञान की शिक्षा दी जानी चाहिए। दोनों साथ चलने चाहिए क्योंकि दोनों एक ही हैं।
इस वक़्त देश का बड़े से बड़ा दुर्भाग्य ये है कि ये जो दो ज्ञान की शाखाएं हैं, दोनों का बड़ा अपमान किया जा रहा है। जो व्यक्ति विज्ञान के विरोध की बात करेगा और तमाम तरह के अन्धविश्वास फैलाएगा वही वो आदमी होगा जो कहेगा आध्यात्मिक शास्त्रों की भी कोई ज़रूरत नहीं है। जो आदमी गहराई से वैज्ञानिक मन का हो गया, वो अध्यात्म की बहुत दिन तक उपेक्षा नहीं कर पाएगा। विज्ञान भी अब वहाँ खड़ा है जहाँ उसे अध्यात्म की ओर आना होगा। इसी तरीके से आध्यात्मिक मन के लिए भी आवश्यक हो जाएगा कि वो विज्ञान की मदद ले। उसमें विज्ञान के प्रति प्रेम का जगना बड़ी स्वाभाविक बात है।
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