सांसारिकता- नशा और नैतिकता

जिसे तुम संसार कहते हो ना, वो दो ही काम करता है, सिर्फ दो काम। वो तुमको शराब पीने के अड्डे देता है, और वो तुमको नैतिकता का पाठ देता है। शराब पीने के अड्डों में शराब परोसी जाती है, और नैतिकता के पाठों में तुम्हें बताया जाता है कि शराब पीना गलत है। जब तुम शराब पीते हो तो तुम तो अपना नुकसान करते ही हो। किस रूप में? कि तुम बेहोश होते हो। और जब तुम्हें नैतिकता के पाठ पढ़ाए जाते हैं, कि शराब पीना गलत है, तब तुम्हारा दुगना नुकसान होता है, क्योंकि तब तुम्हारा मन पछतावे और ग्लानि से भर जाता है, तुम्हें ये दिखाई देने लग जाता है कि मैं छोटा हूँ, मैं नाकाबिल हूँ, मैं अनैतिक हूँ। क्या तुम देख रहे हो कि तुम पर दो तरफा वार किया जा रहा है? एक तरफ तो इसी दुनिया ने जगह जगह पर, हर कोने पर शराब के अड्डे खोले हुए हैं, दूसरी तरफ यही दुनिया तुम्हें स्कूलों में, कॉलेजों में, धर्म में ये सीखा रही है कि शराब पीना अनैतिक है। और दोनों ही तरीकों से मारे तुम ही जा रहे हो। दोनों ही तरीकों से नाश तुम्हारा ही हो रहा है।

क्या ऐसा नहीं हो सकता कि जीवन ऐसा हो, दुनिया ऐसी हो कि व्यक्ति को बेहोशी की ओर जाना ही न पड़े? तुम्हें जो नैतिकता पढ़ाई जाती है, जिसमें कहा जाता है कि शराब पीना गलत है, वो नैतिकता किसी काम की नहीं होती क्योंकि वो नैतिकता हज़ारों सालों से पढ़ाई जा रही है और हज़ारों सालों से शराबी पैदा हुए जा रहे हैं। अगर उस नैतिकता में दम ही होता तो वो कब की शराब को रोक देती। और जब मैं शराब कह रहा हूँ, तो मेरा आशय वो गिलास वाली शराब से नहीं है। इतना तो समझ ही रहे होगे ना? मेरा आश्य बेहोशी से है, वो सब कुछ जो तुम्हें बेहोश करता है।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org