सांसारिकता- नशा और नैतिकता!
प्रश्न: सर, आपने बताया है कि जब एक शराबी शराब पीता है, वो गलत है| इस संसार ने भी हमें ये बताया है कि जब शराबी शराब पीता है, ये गलत है, और ये संसार ही गलत है, मतलब झूठा है| फिर कैसे इस संसार ने हमें ये बता दिया कि ये शराब गलत है?
वक्ता: बैठो| जिसे तुम संसार कहते हो ना, वो दो ही काम करता है, सिर्फ दो काम| वो तुमको शराब पीने के अड्डे देता है, और वो तुमको नैतिकता का पाठ देता है| शराब पीने के अड्डों में शराब परोसी जाती है, और नैतिकता के पाठों में तुम्हें बताया जाता है कि शराब पीना गलत है| जब तुम शराब पीते हो तो तुम तो अपना नुकसान करते ही हो| किस रूप में? कि तुम बेहोश होते हो| और जब तुम्हें नैतिकता के पाठ पढ़ाए जाते हैं, कि शराब पीना गलत है, तब तुम्हारा दुगना नुकसान होता है, क्योंकि तब तुम्हारा मन पछतावे और ग्लानि से भर जाता है, तुम्हें ये दिखाई देने लग जाता है कि मैं छोटा हूँ, मैं नाकाबिल हूँ, मैं अनैतिक हूँ| क्या तुम देख रहे हो कि तुम पर दो तरफ़ा वार किया जा रहा है? एक तरफ तो इसी दुनिया ने जगह जगह पर, हर कोने पर शराब के अड्डे खोले हुए हैं, दूसरी तरफ यही दुनिया तुम्हें स्कूलों में, कॉलेजों में, धर्म में ये सीखा रही है कि शराब पीना अनैतिक है| और दोनों ही तरीकों से मारे तुम ही जा रहे हो| दोनों ही तरीकों से नाश तुम्हारा ही हो रहा है|
क्या ऐसा नहीं हो सकता कि जीवन ऐसा हो, दुनिया ऐसी हो कि व्यक्ति को बेहोशी की ओर जाना ही न पड़े? तुम्हें जो नैतिकता पढ़ाई जाती है, जिसमें कहा जाता है कि शराब पीना गलत है, वो नैतिकता किसी काम की नहीं होती क्योंकि वो नैतिकता हज़ारों सालों से पढ़ाई जा रही है और हज़ारों सालों से शराबी पैदा हुए जा रहे हैं| अगर उस नैतिकता में दम ही होता तो वो कब की शराब को रोक देती| और जब मैं शराब कह रहा हूँ, तो मेरा आशय वो गिलास वाली शराब से नहीं है| इतना तो समझ ही रहे होगे ना? मेरा आश्य बेहोशी से है, वो सब कुछ जो तुम्हें बेहोश करता है|
‘मोरल साइंस’ सबने पढ़ी है ना? और उसमें सत्तर बातें तुम्हें बताई गईं- ‘झूठ मत बोलो, चोरी मत करो, अपहरण मत करो, दुःख मत पहुँचाओ’| और दुनिया तुम देख रहे हो कैसी है? अगर उन बातों में दम ही होता तो दुनिया ऐसी क्यों होती? कभी तुम ये सवाल अपने आप से पूछते न हीं| कभी तुमको ये बात स्पष्ट होती नहीं| हर बच्चा किसी ना किसी के द्वारा तो पाला ही जाता है और जो भी उसे पालता है वो यही कहता है- ‘प्रेमपूर्ण जीवन जियो, हिंसा मत करो’| यही कहा जाता है ना? और दुनिया में चारो तरफ हिंसा ही हिंसा है, क़त्ल है और बलात्कार है| तुमने कभी देखना नहीं चाहा कि ये हो क्या रहा है?
ये संसार जब हमें इतनी ज़ोर-ज़ोर से बता रहा है कि लड़ो मत, मारो मत, तो ये इतने क़त्ल और चोरियाँ कहाँ से आ रहे हैं? ये निर्मम बलात्कार कहाँ से हो रहे हैं? क्योंकि संसार तुम्हें ये दोनों ही चीज़ें दे रहा है, वो तुम्हें बेहोशी दे रहा है, और तुम्हें नैतिकता दे रहा है, पर तुम्हें समझ नहीं दे रहा है|
वो एक तरफ तो कहता है कि ये शराब पीने का अड्डा है, आप आमंत्रित हैं| नियम और कानून दोनों शराब को स्वीकृति देते हैं या नहीं देते हैं? तुम यदि जाओ तो वहाँ लिखा रहता है, अनुज्ञापी लाइसेंस होल्डर शराब का अड्डा| तुम्हारे समाज ने, तुम्हारी सरकार ने, तुम्हारे कानूनों ने शराब को मान्यता दे रखी है| तो एक तरफ तो समाज तुम्हें आमंत्रित कर रहा है कि पियो और दूसरी तरफ तुमसे कह रहा है कि जो पीते हैं, वो नालायक हैं| तो तुम्हारी दशा अब क्या होगी? जल्दी से बताओ |
श्रोता १: जैसे फंस गए हैं|
वक्ता: जैसे फंसे हुए हो| पिया भी नहीं जाता, छोड़ा भी नहीं जाता| तुम बस बंटेे हुए हो, ‘दो पाटन के बीच में साबुत बचा ना कोय’| एक तरफ तो तुमको ये बताया जाता है कि सिगरेट पीना स्वास्थय के लिए हानिकारक है, और कैंसर हो जाएगा| और दूसरी ओर सिगरेट धड़ल्ले से बिक रही है| उससे खूब राजस्व, टैक्स जा रहा है सरकार को| कोई नियम नहीं बना दिया कि ना सिगरेट मिलेगी, ना शराब मिलेगी| मैं फिर कह रहा हूँ कि सिगरेट और शराब से मेरा आश्य सिर्फ़ उन चीज़ों से नहीं है जो पेट में जाती हैं, या जो मुंह में रहती हैं| मेरा आश्य उन चीज़ों से है जो मन को गन्दा करती हैं|
ये रहेंगी, तुम कितने नियम बना लो, तुम नैतिकता के कितने पाठ पढ़ा लो, ये रहेंगी| ये तब तक रहेंगी जब तक आदमी का चित्त साफ़ नहीं हो जाता| तुम पूछो अपने आप से कि किसी को शराब की ज़रुरत पड़ती ही क्यों है? शराब की ज़रूरत इसलिए पड़ती है क्योंकि दुःख है| मात्र दुखी आदमी ही होश से दूर हटना चाहता है| शराब तब तक रहेगी जब तक संसार में दुःख रहेगा| और नैतिकता के पाठ दुःख को बढ़ाते ही हैं, कम नहीं करते| क्या तुम्हारा समाज, तुम्हारा संसार ऐसा है कि वो दुःख के मूल कारणों को देखकर उनका समाधान कर सके?
जब तक दुनिया में ध्यान की कीमत नहीं समझी जाएगी, जब तक तुम्हारी शिक्षा व्यवस्था तुमको मात्र वस्तुओं को देखना सिखलाएगी, अपने आप को नहीं, जब तक घरों और परिवारों में ये उलटे-सीधे संस्कार भरे जाते रहेंगे, धर्म के नाम पर, परंपरा के नाम पर, तब तक दुनिया में शराब कायम रहेगी| घर वालों को पता भी नहीं है कि वो अनजाने में ही अपने चार साल के बच्चे को भी नशेड़ी बना रहे हैं| वो उसे शराब की ओर भेज रहे हैं| जो कुछ भी तुम्हें दुःख की ओर, बेहोशी की ओर भेजता है, वही तुमको शराब के अड्डे की ओर भेज रहा है क्योंकि उसी दुःख को भुलाने के लिए, उसी कश्मकश से निजात पाने के लिए अन्ततः तुमको शराब का सहारा लेना पड़ता है|
बात समझ में आ रही है ? और कई तरह के नशे हैं, यही नहीं कि शराब ही अकेला नशा है| मनोरंजन बहुत बड़ा नशा है| दुःख है तो मनोरंजन चाहिए, दुःख है तो मनोरंजन चाहिए| किसी भी सप्ताहंत पर चले जाओ और देखो कि ये जो शॉपिंग मॉल हैं, इनकी क्या हालत रहती है| देखा ही होगा? भरे हुए हैं लोगों से| कितनी भी वाहियात पिक्चर लगी हो पर लोगों को वो देखनी है क्योंकि जीवन में दुःख बहुत है, बोरियत बहुत है| मन तड़प रहा है, तो उसे मनोरंजन चाहिए, ताकि कुछ समय के लिए वो भूल सके अपने दुःख को| शराबी का भी यही तर्क है कि शराब पीकर कुछ समय के लिए ये भूल जाता हूँ कि जीवन इतना सड़ा हुआ है|
ये जो लोग इतनी शॉपिंग करते हैं और हर सप्ताहंत पर पिक्चर देखने पहुँच जाते हैं, इनका भी यही तर्क है कि कुछ समय के लिए हम भूल जाते हैं कि जीवन कितना सड़ा हुआ है| ये जो तुम हर रात बैठ कर देखते हो कि गृह्णीयाँ तीन-तीन घंटे तक टी.वी. देख रही हैं, उनका भी यही तर्क है कि ये सब देख कर कहीं और पहुँच जाते हैं| एक क्षणिक निजात मिल जाती है| दुःख है इस कारण मनोरंजन की ज़रूरत है| दुःख है इसी कारण फिर महत्वकांक्षाओं की और लक्ष्यों की ज़रूरत है| ये सब शराब है|
तुम कहते हो कि अभी जो है वो इतना नापसंद है कि आगे मुझे कुछ और चाहिए| फिर तुम महत्वकांक्षाएं पा लते हो| फिर तुम्हारे मन में लक्ष्य उठते हैं| ये सब शराब है, और इन सब का मूल कारण दुःख है| समझ में आ रही है बात? ये बिल्कुल मत सोचना कि नैतिकता के पाठ से नशे बंद हो जाएँगे, नैतिकता खुद एक नशा है| वो कहाँ से नशों को बंद कर देगी?जो भी कुछ बेहोशी है, वही तो नशा है ना? नैतिकता खुद एक बड़ी बेहोशी है|
-‘संवाद’ पर आधारित| स्पष्टता हेतु कुछ अंश प्रक्षिप्त हैं