सांयोगिक से आत्मिक तक
हुकमी हुकमु चलाये राहु।
~ नितनेम
आचार्य प्रशांत: वो अपने हुक्म से राह पे चलाता है। राह तो सामने ही है। जहाँ खड़े हो वही से चलती है। हुकुमी ‘स्वभाव’ ही है तो कहीं दूर जाना नहीं है पूछने। हुक्म तभ भी उल्टा–पुल्टा हो जाता है, कदम फिर इधर–उधर पड़ते हैं क्योंकि जो दुनिया में सबसे अजीब काम हो सकता है, वो होता है। बाकी सब याद रहता है, अपने को भूल जाते हैं। कैसे याद रखें कि ‘पूछें’। कैसे याद रखे की ‘उससे’ पूछ के ही करेंगे।
श्रोता: समभाव मान लेना।
आचार्य जी: किसकी?