सही चुनाव का समार्थ्य

सही चुनाव का समार्थ्य

आचार्य प्रशांत: बताइए, क्या प्रश्न हैं? प्रश्न भी कुछ जन्माष्टमी विशेष जैसे ही होने चाहिए। ये न हो कि अभी बातचीत हुई और प्रश्न स्थूल कोटि के आ गए।

प्रश्नकर्ता: प्रणाम, आचार्य जी।

आचार्य: खीर वगैरह बनी कि नहीं बनी?

प्र: नहीं, आचार्य जी। खीर नहीं बनी है।

आचार्य: तो अभी बनेगी न रात तक?

प्र: मैं अकेले रहता हूँ, परिवार के साथ नहीं रहता।

आचार्य: अकेले नहीं रहते होते तब तो खीर वाला कार्यक्रम होता ही?

प्र: हाँ, घर पर होता है। घर पर तो होगा-ही-होगा बिलकुल। हाँ, उसको मना नहीं कर सकते। मेरे साथ तो और भी ये है कि पहले ही पतले हो रहे हो, सेहत का ध्यान नहीं रखते और दूध-घी नहीं खाओगे तो पता नहीं क्या होगा।

आचार्य: (व्यंग करते हुए) तो खा लीजिए, आज तो जन्माष्टमी है, दूध वगैहरा ले लीजिए।

प्र: जी, ठीक है। आचार्य जी, तो मेरा प्रश्न…

आचार्य: पहले मेरा प्रश्न तो बताइए न। ठीक रहेगा न, आज तो चलेगा?

प्र: नहीं मेरे को अन्दर से अब मन नहीं होता है खाने का। मतलब पहले तो कभी-कभार होता था, अब लगभग दो साल हो गए हैं दूध-घी छोड़े हुए। पहले मन करता था शुरुआत के तीन-चार महीने, लेकिन अब नहीं। क्योंकि मैं ऋषिकेश में रहता हूँ तो यहाँ पर तो गायें सड़कों पर इतनी ज़्यादा होती हैं कि खीर-दूध कम दिखता है, जानवर ज़्यादा दिखते हैं।

आचार्य: चलिए प्रश्न बताइए।

प्र: आचार्य जी, पिछले सत्र में आपने बताया था कि जो हमारा जेनेटिक कोड (जैविक सामग्री) है उससे ये बताया जा सकता है कि हम कैसा जीवन जीने वाले हैं, हमारा आगे का जीवन कैसा होगा मतलब सब पूर्वनिर्धारित होता है। तो फिर इसमें हमारे चुनाव की जगह कहाँ बचती है? क्या ये भी निर्धारित है कि मैं अध्यात्म की ओर जाऊँगा या नहीं?

आचार्य: ये नहीं निर्धारित होता। आप बात को उल्टा ही कर दिए हैं बिलकुल। जो कुछ भी पाशविक है आपके जीवन में, वो निर्धारित होता है आपकी जैविक संरचना द्वारा। आप कृष्ण की ओर जाएँगे या नहीं जाएँगे, ये आपकी चेतना का चुनाव होता है। चेतना पूरी तरह यांत्रिक नहीं होती। वो हो भी सकती है, नहीं भी हो सकती है। यदि जीवन में चुनाव का, विवेक का कोई स्थान नहीं होता तो फिर तो सारा अध्यात्म बेमतलब है बिलकुल। आम-आदमी बेहोश रहता है, आम-आदमी अचेत है, तो इसके लिए फिर उसके पास कोई चुनाव नहीं बचता है। वो बिलकुल वही करता है जो उसको उसका शरीर करवाता है। ये सामान्यतया होता है, पर ये अनिवार्य नहीं है। और ये न हो इसी के लिए गीता ज्ञान है कि वैसे ही मत जियो जैसे तुमसे ये शरीर और…

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

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