Member-only story
सही काम करने की नीयत माँगो, तरीका नहीं
तरीके के माँग करना एक आंतरिक चालाकी है बदलने के खिलाफ। जब दुख व्यक्ति का चुनाव है तो तरीके की माँग भी फिर क्या हुई? आप चुन रहे है न कि आप स्वयं नहीं करेंगे, आप किसी और से जाकर के माँग करेंगे।
इसी तरीके से जब दूसरा बिंदु है सार्थक कर्म का, तो सार्थक कर्म आपको ही करना है न और सार्थक कर्म आपको निरंतर करना है जैसे चुनाव निरंतर है। लगातार क्या आप किसी से विधि पूछेंगे कि कैसे चुनू और कैसे सार्थक कर्म करूँ? कोई कितनी विधियाँ बताएगा आपको, जब स्थितियाँ लगातार बदल रही है।
गुरु कभी भी बिल्कुल निचले तल पर आकर के दिशा निर्देश नहीं देता, गुरु आसमान में सूरज की तरह प्रकाश दे देता है, सूत्र दे देता है, उन सूत्रों का उपयोग अपनी ज़िंदगी में आपको ही करना होता है। गुरु ने भी यही कहा है कि विधि मत माँगना।
कमज़ोरी को छोड़ना कोई विधि थोड़ी ही माँगता है, विधि तो लगती है कमज़ोरी को पकड़े रहने में। आपने कभी देखा नहीं कि कितने ज़्यादा उपाय लगते हैं अपनी कमज़ोरी बचाए रखने के लिए, छोड़ना कोई उपाय माँगता है क्या? कमज़ोरी छोड़ने का तो सीधा-साधा उपाय ज़िंदगी है, ज़िंदगी ठोकरें दे रही है, लाते मार रही है, उसके बाद भी आप कमज़ोरी छोड़ नहीं रहे तो अभी और क्या उपाय चाहिए? उपाय माँगने की बात भी कमज़ोरी बचाए रखने का ही हिस्सा है।
कर्मफल का सिद्धांत मात्र सिद्धांत नहीं है, वो आध्यात्मिक सुधार का सबसे केन्द्रीय साधन है। आप जैसे हो आपको उसका पूरा फल मिलने लग जाए तो आपको मजबूर होकर सुधरना पड़ेगा। दिक्कत तब आती है जब कोई प्रेम वश, दया वश, कभी करुणा वश आपके…