सहज और असहज संतुलन
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प्रश्न: आचार्य जी, असहज संतुलन और सहज संतुलन में क्या भेद है?
आचार्य प्रशांत:
सहज संतुलन होता है कि जहाँ पर तुम्हें असहज किया गया तो तुम पुनः सहज हो जाओगे।
उसको स्टेबल एक्विलिब्रियम भी बोलते हैं। समझ रहे हो बात को?
दर्शाऊँ, कैसे होता है?
ये पेन है अभी यहाँ पर (एक मुड़ी हुई कॉपी के अंदरूनी मोड़ की सतह पर) है, यह कहलायेगा सहज संतुलन, क्यों? क्योंकि इसको तुम असहज भी करोगे, यहाँ कर दोगे (अंदरूनी मोड़ के ऊपर की तरफ, फिसलपट्टी के जैसे), तो ये वापस (फिसल कर) वहीं आ जाएगा जहाँ जिसे आना है (कॉपी के मुड़ने से बनी घाटी में)। इसे इसका घर पता है, इसे इसकी मंज़िल पता है, इसे इसका मालिक पता है। तुम इसके साथ धोखाधड़ी नहीं कर सकते। तुम इसके साथ चालाकी करोगे, तुम इसी के साथ चालाकी कर के दूर भी ले गए इसकी मंज़िल से तो ये क्या कर रहा है? (फिर से फिसल कर घाटी में आ रहा है)
ऐसे बहुत कम लोग होते हैं कि जिन्हें उनकी सहजता से, उनके ठिकाने से, अगर तुम विस्थापित भी कर दो, तो वो खुद ही वापस पहुँच जाएँ। जैसे ये वापस पहुँच रहा है। ऐसे बहुत कम लोग होते हैं। ये सहज संतुलन है, ये संत का संतुलन है। तुम उसे हिला दो, तुम उसे परेशान कर दो, कर सकते हो; पलक झपकते ही देखोगे क्या? वो जैसा था फिर वैसा ही हो गया। तुम्हारी सारी कोशिश व्यर्थ गयी।
और संसारी का संतुलन ऐसा होता है। (मुड़ी हुई कॉपी को उल्टा करते हुए, उसकी चोटी पर पेन को टिकाते हुए) अब संतुलन तो है, पर इतना असहज है कि बिलकुल दिल धक्-धक् कर रहा है। क्योंकि बच्चू ज़रा सा डिगे नहीं कि? मौत है। ये है संसारी का संतुलन।
दिखने में दोनों एक जैसे दिखेंगे क्योंकि दिखने में दोनों स्थिर हैं। पर एक को बड़ी श्रद्धा है, आस्था है, अटूट निष्ठा है, उसे पता है के मेरा कुछ हो नहीं सकता, तुम हिला लो जो हिला सकते हो। तुम उखाड़ लो जो उखाड़ सकते हो। लो उठाओ, मुझे यहाँ रख दो। मैं क्या करूँगा? मैं फिर अपने घर में वापस आ जाऊँगा। मेरे घर का नाम है आत्मा, मेरे घर का नाम है शांति। मेरे घर का नाम है राम। मेरे घर का नाम है खुदाई। जो भी कह लो वो मेरे घर का नाम है, तुम मुझे कितना हटा लो अगले दिन पाओगे कि मैं? वापस आ गया।
ये संसारी का संतुलन है (पेन को मुड़ी हुई कॉपी की चोटी पर रखते हुए)। किसी तरीके से (उसको चोटी पर बैठाने की कोशिश करते हुए); हो गयी मिट्टी (पेन गिर जाता है)। किसी तरीके से जान हथेली पर रख के टिके हुए हैं। अब ये संतुलन में तो है, एक्विलिब्रियम में तो है पर देखो कितना अस्थिर है, अस्थायी है। जो अस्थायी है वही असहज है। गिरे जा रहे हैं, काल इन्हें खाये जा…