सस्ती है वो हँसी जिसके पीछे दर्द न हो

सस्ती है वो हँसी जिसके पीछे दर्द न हो

प्रश्नकर्ता: प्रणाम आचार्य जी। मैं चौबीस साल का हूँ और मेरा सवाल ये है — हमारे जीवन में उदासी क्यों बनी रहती है?

मैं बहुत बार जब अपने-आपको देखता हूँ तो किसी-न-किसी विचारों में बहुत बार लिप्त हो जाता हूँ, और ख़ुद को पाता हूँ कि उदास ही हूँ, वो जो सोच रहा हूँ उसमें भी। कई बार शुभ विचार भी कर रहा हूँ, उसमें भी विचार करते हुए भी उदासी रहती है। वीडियो (चलचित्र) वगैरह भी देख रहा हूँ आपकी, या किताब पढ़ रहा हूँ, तो उसको भी पढ़ते वक़्त जब ख़ुद पर खयाल आता है तो उस वक़्त मुझे पता चलता है कि मैं उदास हूँ, जैसे अभी पता चल रहा है कि अभी घबराहट है। ये उदासी बनी रहती है जीवन में। कहीं जा रहे हैं, कहीं कुछ कर रहे हैं, जब-जब खयाल आता है ख़ुद को देखने का तो देखता हूँ, समझता हूँ। जैसे सुबह से मैं जो भी कर रहा हूँ तो अपने-आपको देख रहा हूँ, और यही आ रहा है कि उदासी है जीवन में; उदासी रहती है। क्या ये मेरा अभ्यास है?

आचार्य प्रशांत: ये तुम्हारी हस्ती है। आदमी क्यों अनिवार्य रूप से सुख की तलाश में रहता है? कोई देश हो, कोई काल हो, कोई उम्र हो, कोई लिंग हो, कोई अवस्था हो, हर व्यक्ति को खुशी क्यों चाहिए दुनिया में? जिसको देखो वही क्या चाहता है, खुशी चाहता है न? तो इससे क्या पता चलता है? कि हर आदमी की हस्ती मूल-रूप से उदास है, उदास ना हो तुम तो खुशी क्यों माँगोगे? और पूरी दुनिया खुशी के लिए मर रही है; खुशी की कोशिश करते-करते मर ही जाती है।

तो तुम अगर उदास हो तो इसमें कोई अपराध नहीं है तुम्हारा, इसमें कोई विशिष्टता नहीं है तुम्हारी, ये तो बात तुम्हारी हस्ती की है। शरीर लेकर पैदा हुए हो, जीव हो, तो उदास ही पैदा हुए हो; उदासी ही जन्म लेती है। और सौभाग्य होता है उनका जो अपनी उदासी से आँखें-चार कर पाते हैं, सौभाग्य होता है उनका जो अपनी उदासी के सम्मुख खड़े हो पाते हैं। बाकी ज़्यादातर लोग तो इतना डर जाते हैं अपनी ही उदासी से कि उसकी ओर पीठ कर लेते हैं। उदासी उधर खड़ी है, उदासी से डर जाओगे, उदासी की ओर पीठ कर लोगे तो मुँह उदासी से विपरीत दिशा में कर लोगे न? और उदासी का विपरीत क्या खड़ा हुआ है? सुख। अब समझ में आया ज़्यादातर लोग सुख की ओर क्यों देख रहे होते हैं? ताकि उन्हें उदासी का सामना ना करना पड़े।

उदासी का सामना तो करना पड़ेगा। जब आप सुख की ओर देख रहे होते हो, उस वक़्त से ज़्यादा किसी वक़्त आपको नहीं पता होता कि आप उदास हो। पानी की ओर जब हाथ बढ़ा रहे हो, उस वक़्त से ज़्यादा किसी वक़्त पता है आपको कि आप प्यासे हो? जो आदमी भाग रहा है पानी की ओर, उससे ज़्यादा कौन जानता है कि वो प्यास से कितना बेहाल है?

अब क्या करना है? एक तो यही विकल्प है जिसकी अभी बात हो रही है, कि उदास पैदा हुए हो, जीवन-भर…

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

More from आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant