सस्ती है वो हँसी जिसके पीछे दर्द न हो

आदमी क्यों अनिवार्य रूप से सुख की तलाश में रहता है? हर आदमी की हस्ती मूलरूप से उदास है। पूरी दुनिया ख़ुशी के लिए मर रही है। सौभाग्य होता है उनका जो अपनी उदासी से आँखें चार कर पाते हैं।

उदासी से भिड़ना पड़ेगा। भागना और भिड़ना - जीने के सिर्फ़ यही दो तरीके होते हैं। किसी एक तरीके को तो चुनना पड़ता है। लेकिन पर्याप्त अनुभव ले लेने के बाद भी भागे ही जाओ तो फिर ये पागलपन है। शायद ख़ुशी का रास्ता उदासी के विपरीत नहीं है, उदासी के भीतर से है।

उदासी के विपरीत जाकर के जो ख़ुशी मिलती है वो भ्रम है, झूठ है और जो उदासी का सीना चीर के जो ख़ुशी मिलती है, वो असली चीज़ है। वो चीज़ खरी है। उसी को अध्यात्म कहते हैं। और वो ख़ुशी उस भ्रामक ख़ुशी से इतनी अलग है कि उस ख़ुशी से के लिए फिर नाम ही दूसरा दे दिया गया, उसको आनंद कहते हैं। ख़ुशी हलकी-सस्ती चीज़ है, आनंद खून बहा के मिलता है।

अपनी उदासी के साथ सहज होना सीखो। जिन्हें आनंद चाहिए हो वो उदासी को गले लगा ले। जो सौन्दर्य उदासी में है वो उथली, छिछली ख़ुशी में कहाँ? जो मूल्य उदासी की गहराइयों में है वो किसी भी ख़ुशी में कहाँ? गहराई जिस कीमत में मिले सस्ती है।

हंसी भी नूरानी तब होती है जब उसके पीछे दर्द हो। सुख के रास्ते कोई आनंद तक नहीं पहुँचा। आनंद तक जो भी पहुंचे हैं वो दुःख में प्रवेश करके, दुःख का अनुसन्धान करके ही पहुंचे हैं।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org