सर, आपके जीवन में आपकी माताजी का क्या योगदान रहा?

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी प्रणाम। आचार्य जी अभी कुछ दिनों पहले शहीद दिवस था, तब आपसे एक प्रश्न पूछा था जो कि कायरता और वीरता के ऊपर था। तब आपने वहाँ उत्तर देते हुए कहा था कि ये एक माँ पर निर्भर करता है कि उसका जो सपूत है वो कायर निकलेगा या वीर निकलेगा। अब उस वक़्त मेरे पास एक प्रश्न था जो मैं पूछ नहीं पाया था पर आज मैं अपने आपको रोक नहीं पाया, कि आपकी माताजी भी यहाँ पर हैं, तो मैं जानना चाहता था कि आप को बनाने में उनका क्या योगदान था?

आचार्य प्रशांत: कमज़ोरियों को प्रश्रय नहीं दिया। कमज़ोरियों को प्रश्रय नहीं दिया, इतना निश्चित रूप से है। वो जो साधारण माँओं वाली ममता या सहानुभूति होती है उसकी ख़ुराक मुझे नहीं मिली, तो वो अच्छी चीज़ थी। आज मैं आपसे एकदम विश्वास के साथ अगर कह पाता हूँ कि ‘चोट लगे, दर्द हो, जो भी हो भिड़ जाओ’, तो उस में इनका योगदान था काफी। मुझे अपने बचपन में ऐसा कुछ भी स्मरण नहीं आता जहाँ मैं ग़लतियाँ कर रहा हूँ या कमज़ोरियाँ दिखा रहा हूँ और उसके एवज में मुझे सांत्वना मिल रही हो, या दुलार मिलना तो दूर की बात है, सांत्वना भी नहीं। तो ये भाव कि आपकी दुर्बलताओं और दुर्गुणों को घर में छाँव नहीं मिलेगी, ये मुझमें स्थापित किया गया था बचपन से।

एक घटना बताता हूँ। आठवीं में था, और फाइनल एग्जाम था, तो अप्रैल का महीना था, लखनऊ में गर्मियाँ काफ़ी हो जाती हैं। पढ़ाई में एकदम अच्छा रहना इस पर बहुत ज़ोर था बचपन से और इस बात में किसी तरीके की किसी रियायत या समझौते की कोई गुंजाइश रहती नहीं थी। मैं ऐसी कल्पना भी नहीं कर सकता था कि मैं ठीक से पढूँगा-लिखूँगा नहीं या स्कूल से भद्दे नंबर या भद्दा रिपोर्ट कार्ड लेकर आऊँगा तो घर पर मेरा स्वागत होगा। स्वागत होता था फिर दूसरे तरीके से! मेरा एक फटा हुआ रिपोर्ट कार्ड अभी भी…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org