सरलतम व श्रेष्ठतम मन ही आध्यात्मिक हो सकता है

ब्रह्म विद्या सूक्ष्मतम विद्या है और ये श्रेष्ठतम मनों के लिए है। हम बहुत भूल करेंगे अगर हम सोचेंगे कि जो गए-गुजरे किसी काम के नहीं होते, समाज से पूरे तरीके से त्यक्त जो लोग हैं, निर्वासित किस्म के, आध्यात्मिकता उनके लिए है, कि जब बूढ़े हो जाओ और मरने का वक़्त आ जाए तो आध्यात्मिक हो जाओ, जब तुमको ये भी याद नहीं है कि कपड़े पहन रखें है या नहीं, मुँह में दांत नहीं और पेट में आंत नहीं, तब आध्यात्मिक हो जाओ।

और न ये मूर्खों के लिए है कि जो किसी काम का नहीं है वो साधू बन जाए कि जितने लोग घर से फेंके हुए लोग हैं — कि और तो कुछ कर नहीं सकता ऐसा कर तू बाबा बन जा। ये उनके लिए नहीं है, ये श्रेष्ठतम मन के लिए है। ये बातें इतनी सूक्ष्म है कि भोठरी बुद्धि को समझ में नहीं आएंगी। वो यही कहेंगे कि — हैं ये क्या बोल दिया, ऐसा कैसे हो सकता है। अब उसमें लोचा यह है कि बुद्धि में धार भी इसी रास्ते पे चल के आती है। तो जिसकी बुद्धि भोठरी है उसमें धार भी आए कहाँ से? उसको इसी रास्ते चलना पड़ेगा, वास्तव में।

यह सबसे बुद्धिमान लोगों का काम है, साधारण लोग इसकी तरफ आएंगे ही नहीं। उन्हें खुद ही अच्छा नहीं लगेगा, वो भागेंगे इससे। उन्हें तुम यहाँ सत्र में ले भी आओगे तो वो मुंह छुपा के कहीं कोने में बैठे रहेंगे, उनका दम सा घुटेगा यहाँ, उन्हें लगेगा कि बस भागो यहाँ से।

गीता में कृष्ण अर्जुन को बहुत स्पष्ट रूप से बोलते हैं कि — अर्जुन दुनिया के कामों में जो श्रेष्ठतम काम हो सकता है वो यही है- स्वयं जगना और दूसरे को जगाना। बाकी सारे काम इसके समक्ष…

--

--

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org