सम्यक जीना किसको कहते हैं?

सम्यक जीवन वो जिसमें हानि-लाभ, दोस्त-दुश्मन सब एक बराबर हैं।

महात्मा बुद्ध बोले — मित्र नहीं है मेरा शत्रु कैसे होगा?
मित्रता-शत्रुता दोनों श्रद्धाहीनता की निशानियाँ हैं।
मित्रता-शत्रुता दोनों अप्रेम की निशानियाँ हैं।

जीवन के केंद्र पर जब शांति नहीं होती, सत्य नहीं होता, सफाई नहीं होती
तब उसपर ये दो तरह के विकार होते हैं।

एक विकार है किसी को अपना मान लेना।
तू मेरा, तू मेरा (मोह-राग)

और दूसरा विकार है दूसरे को पराया मान लेना (द्वेष)

आकर्षण-विकर्षण इन दोनों को मिलाकर कहा जाता है, व्यामोह।
व्यामोह माने भ्रम, झंझट, धोखा।

किसी के प्रति न अच्छे हो, न बुरे हो आप बस अच्छे हो जाइए।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

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