सम्यक क्रोध

प्रकृति ने सबको कुछ-न-कुछ दिया है, थोड़ा अलग-अलग दिया है। किसी को संयम दिया है, किसी को क्रोध दिया है। किसी को बुद्धि दी है, किसी को स्मृति दी है। किसी को धन दिया है, किसी को निर्धनता दी है।

जिसको जो कुछ भी मिला है, वो उसी का उपयोग करे अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए।

तो प्रश्न ये नहीं होना चाहिए कि — “मुझे क्या मिला, मुझे क्या नहीं मिला?”

प्रश्न ये होना चाहिए — “मुझे जो कुछ भी मिला, उसका उपयोग किस दिशा में किया?”

क्रोध उठता है। कब उठता है क्रोध — जब अपने स्वार्थ पर आँच आती है, या जब परमार्थ रुकता है? क्रोध तो दोनों ही स्थितयों में उठता दिखाई दे रहा है।

अधिकाँश लोग क्रोध करते हैं जब उनके निजी स्वार्थ पर चोट पड़ती है।

और एक क्रोध वो भी होता है, जो श्री कृष्ण ने कुरुक्षेत्र में दर्शाया था। रथ का चक्का उठाकर भीष्म की ओर दौड़ पड़े थे। वो भी क्रोध ही था।

तो कहाँ से आ रहा है तुम्हारा क्रोध — स्वयं की रक्षा के लिए आ रहा है, या धर्म की रक्षा के लिए आ रहा है?

और धर्म की तुमने परिभाषा क्या बना ली है?

धर्म माने — अपनी धारणाओं और अपने स्वार्थों की परिपूर्ति?

या,धर्म माने — अहम का विसर्जन?

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

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