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सम्बन्ध क्या हैं?

पहले यह समझना पड़ेगा ‘सम्बन्ध’ माने क्या? यह शब्द जब हमारे दिमाग में आता है तो इसके दो अर्थ हो सकते हैं।

एक अर्थ तो यह है कि कुछ शब्द हैं जिनको हम सम्बन्ध मान लें — दोस्त, माँ, बाप, पति, पत्नी, बहन, भाई। हम कहते हैं इसका अर्थ है — सम्बन्धित होना। यह सम्बन्ध हैं। जीवन में यही तो सम्बन्ध होते हैं — मालिक-नौकर, शिक्षक-छात्र — यही तो सम्बन्ध होते हैं।

सम्बन्धों को देखने का एक तरीका तो यह है कि सम्बन्धों का अर्थ है — दो लोगों के बीच में बंधा-बंधाया रिश्ता। दो लोगों का जो आचरण होता है वह इस-इस प्रकार से हो, उसके कुछ नियम — यह है सम्बन्ध।

एक सम्बन्ध तो वह है जो अतीत से आ रहा है — घर, परिवार, राष्ट्र, दोस्ती-यारी। और वह पूर्व निर्धारित है। पहले से ही पता है कि ऐसा है।

“मैं इसका दोस्त हूँ और दोस्ती में ऐसा-ऐसा किया जाता है,” बात ख़त्म।

“यह मेरी बहन है, यह मेरा भाई है, और इनका साथ ऐसा रिश्ता होता ही है। दुनिया में हर भाई का हर बहन से यही रिश्ता होना है,” बात पक्की।

दूसरा तरीका है रिश्तों को देखने का कि — रिश्तों में कोई अतीत नहीं होता। रिश्ता ठीक अभी का होता है।

और इसी तरीके से दो प्रकार का जीवन होता है। एक जीवन तो वह कि मुझे पहले से ही पता है कि मेरा किससे क्या रिश्ता है और उसको जीना कैसे है, और मैं उसको उसी तरीके से जिए जा रहा हूँ। कोई मेरा भाई है, तो मुझे पता है भाई के साथ अच्छे से रहना चाहिए, भाई मुसीबत में हो तो मदद करनी ही पड़ेगी। क्यों? क्योंकि ऐसा सिखाया ही गया है।…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant
आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

Written by आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

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