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समूची प्रकृति की इच्छा

प्रश्नकर्ता: प्रकृति हमारे प्रति इतनी बेरहम और असम्वेदनशील क्यों होती है?

आचार्य प्रशांत: प्रकृति ने ऐसा क्या किया भाई? तुम प्रकृति ही हो, तुम प्रकृति के वो विशिष्ट उत्पाद हो जिसके माध्यम से स्वयं प्रकृति निर्वाण खोज रही है। मैं बार-बार कहता हूँ न कि तुम अहंकार हो; अहंकार कोई प्रकृति से हट कर होता है क्या? अहंकार भी प्रकृति का ही एक अव्यव है, अहंकार भी प्रकृति का ही एक हिस्सा है, एक तत्व है। लेकिन इस तत्व को प्रकृति के पार जाना है, माने — प्रकृति स्वयं अपने पार जाना चाहती है, किसके माध्यम से? अहंकार के माध्यम से। वो अहंकार सबसे ज़्यादा प्रबल किसमें होता है? मनुष्य में।

तो, प्रकृति स्वयं मुक्ति खोज रही है। तुम्हें क्या लगता है, प्रकृति व्यर्थ ही इतनी लम्बी यात्रा पर है? यूँ ही पत्ते झड़ते हैं? यूँ ही फूल खिलते हैं? यूँ ही चाँद सितारे अपनी-अपनी कक्षा में घूम रहें हैं? वहाँ भी कोई इच्छा है भाई। प्रकृति भी कुछ चाह रही है, यूँ ही नहीं वो जा कर पुरुष के इर्द-गिर्द नाचते रहती है। जीवों की आँखों में देखो, तुम्हें वहाँ भी एक अभिलाषा, एक प्यास दिखेगी। प्रकृति बेमतलब नहीं है, और मनुष्य जन्म को इसीलिए विशिष्ट और सर्वोपरि कहा गया है, क्योंकि तुम प्रकृति की मुक्त होने की अभिलाषा के प्रतिनिधि हो। तुम हो, जिसका निर्माण किया है प्रकृति ने मुक्त होने के लिए।

अब ये जो अहम् है, जो प्रकृति का ही एक तत्व है, इसके पास विकल्प होते हैं; इसके पास एक विकल्प ये है कि प्रकृति के जो बाकी अन्य तत्व हैं, ये उनसे लिपटा-चिपटा बैठा रहे, या ये वो काम करे जिसके लिए इसकी पैदाइश और नियुक्ति…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant
आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

Written by आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

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