समीप आओ, और बात करो

प्रश्नकर्ता: हम चर्चा क्यों करते हैं? हम विचार क्यों करते हैं? समझ की प्रक्रिया क्या है?

आचार्य प्रशांत: मन जैसा है हमारा वहाँ परम मौन में स्थापित हो जाना मन के लिए सहजता से संभव नहीं हो पाता है। वो उपकरण मांगता है। शब्द वह उपकरण है। आप कह रहे हैं कि चर्चा की ज़रूरत क्या है। अगर मैं वक्ता को पूरे ध्यान से, एकनिष्ठ होकर सुन रहा हूँ, तो बिना चर्चा के ये सब समझ में आ जाएगा। हाँ, बात बिल्कुल ठीक है। पर शर्त बहुत बड़ी है। बात बिल्कुल ठीक है पर उसके पीछे शर्त बहुत बड़ी है। पूरे ध्यान से, और एकनिष्ठ होकर। इसलिए मैंने कहा कि ये तो परम भक्ति में ही हो सकता है जहाँ कुछ ना कहा जा रहा हो और सब समझ में भी आ रहा हो। नहीं तो चर्चा अपने आप में आवश्यक है। महत्वपूर्ण उपकरण है। आप प्रयोग कर के देख सकते हैं।

आप ज़्यादा ध्यान में कब होते हो? यह अपने आप से पूछें क्योंकि मामला महत्वपूर्ण है। हम ज़्यादा गहरे ध्यान में कब होते हैं? तब जब हम चर्चा में उतर जाते हैं, या तब जब मात्र कोई बोल रहा है और आप सुन रहे हैं? और मैं व्यर्थ-चर्चा की बात नहीं कर रहा हूँ। मैं सत्य-चर्चा की बात कर रहा हूँ। पूछिये अपने आप से। आज ही एक विडियो चल रहा था और कृष्णमूर्ति बोल रहे थे, तब कितनी बार मन इधर-उधर भागा? यही कृष्णमूर्ति आप से संवाद कर रहे होते तो मन को भागने का कोई उपाय नहीं था। उसे सुनना पड़ेगा। उसे बात करनी पड़ेगी। नहीं तो बड़ा आसान है कि उधर कुछ चल रहा है और इधर मन में कुछ और चल रहा है।

एक चर्चा में एक छात्र ने यही सवाल किया है कि आप हमारे कॉलेज में कई साल से आते हैं संवाद लेने के लिये, मेरे पास आपसे…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org