समाज से मिली शर्म

आपके नेता, महंत, अभिभावक, सबके सब ग्लानि के निर्माता हैं, क्योंकि वही अकेला तरीका है कि आपको नियंत्रण में रखा जा सके, आपको धोखा दिया जा सके।

बड़ी विचित्र प्रक्रिया है।

वो पहले तुम्हें समझाते हैं कि तुममें खोट है, फिर तुमसे कहते हैं, “तुम्हारी खोट का इलाज सिर्फ़ हमारे पास है।”

इन दोनों वक्तव्यों को जोड़ के बताओ क्या कहा उन्होंने?

हमारे नीचे आ जाओ — “अगर चाहते हो कि तुम्हारी खोट मिटे, तो फिर जैसा हम कह रहे हैं करते चलो। हमारे नियंत्रण में रहो।”

दूसरे के भीतर ग्लानि जगाना ज़रूरी है, यही एक मात्र तरीका है उसको काबू में रखने का। तुम अपने ही ख़िलाफ़ जा सको, इसके लिए ज़रूरी है कि तुम्हें बता दिया जाए कि अपने साथ जाना कोई गंदी बात है। तुम्हारे भीतर अनैतिकता का डर बैठाना ज़रूरी है।

जानते हो तुमसे क्या कहा जाता है?

तुमसे कहा जाता है कि — “प्रेम के प्यासे हो तुम, सम्मान के प्यासे हो तुम, और वो सबकुछ तुमको हमसे ही मिलना है। हमसे तुम्हें वो सब तब मिलेगा, जब तुम हमारी शर्तों के अनुसार आचरण करो। जब तुम हमारी शर्तों के अनुसार आचरण कर रहे होगे, तो उसका नाम होगा ‘अच्छा’। और जो कुछ तुम हमारी शर्तों के ख़िलाफ़ कर रहे होगे, उसका नाम होगा ‘बुरा’।”

तुमने अच्छाई-बुराई के पैमाने पाए कहाँ से? तुम्हें कैसे पता क्या अच्छा, क्या बुरा? तुम्हें किसने सिखाया क्या तुम्हारे कर्तव्य हैं, किस चीज़ का नाम ज़िम्मेदारी है? तुम्हें कैसे पता कैसे जीना चाहिए, कैसे मरना चाहिए, कैसे…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org