समाज में ताक़त और इज़्ज़त की चाहत

प्रश्नकर्ता: जिस समाज में मैं प्रतिदिन जी रहा हूँ, उसमें ताक़त और प्रतिष्ठा ही सब कुछ है। जिसकी हैसियत और उपाधि ना हो उसे कोई सुनता भी नहीं और जो समाज में ऊँचे स्थान पर बैठा है, वो कुछ अनर्गल ही क्यों न बके वो परम-सत्य मान लिया जाता है। मैंने कुछ ख़ास नहीं पाया जीवन में, क्या इस नीति अनुसार मैं सदा दबा-दबा ही जिऊँगा?

आचार्य प्रशांत: कई बातें हैं आपसे पूछना चाहूँगा इसमें। किनसे दबा-दबा? कह रहे हैं कि दुनिया में यही देखा है कि जिनके पास ताक़त है, सत्ता है, प्रतिष्ठा है वो कितनी भी व्यर्थ, अनर्गल बकवास ही क्यों न करें, लोग सुनते हैं। और जिनके पास नहीं है ताक़त, उनकी कोई नहीं सुनता। तो पूछ रहे हैं कि, "फिर मैं क्या करूँ? दबा-दबा जिऊँ?" तो मैंने पूछा है कि किससे दबे दबे? किससे दबे-दबे? बताते चलिए (प्रश्नकर्ता की ओर इशारा करते हुए)

प्र: इसी बीच अपनी आवाज़ भी दब जाती है।

आचार्य: किसके सामने?

प्र: जो भी श्रोता रहता है।

आचार्य: वो जो श्रोता हैं, उन्हीं के बारे में अभी-अभी आपने क्या बताया?

प्र: अनर्गल ही क्यों न बकें, मान लेते हैं।

आचार्य: नहीं, नहीं; आपने समाज के बारे में कुछ बात हमसे कही, ठीक है न? हमें एक प्रारूप, एक मॉडल दिया। कुछ बात बताईं समाज के बारे में, क्या बात बताई अभी-अभी? बताई कि समाज के लोग ऐसे हैं कि वो गुण नहीं देखते, योग्यता नहीं देखते। वो ये देखते हैं कि कौन कितना चमका हुआ है, कितने किसके अनुयाई हैं, सत्ता किसके पास है, पैसा किसके पास है वगैरह-वगैरह, ये सब।

तो आपके अनुसार इस तरह के लोग हैं समाज में, ठीक है? मैं आपके कहे पर ही चल रहा हूँ। तो आपके अनुसार समाज ऐसे लोगों से…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org