समाज में छवि बनाने की चाह क्यों रहती है?

प्रश्न: समाज में छवि बनाने की चाह क्यों रहती है?

आचार्य प्रशांत: छवि भी यूँ ही नहीं पकड़ लेते, उसके पीछे भी बड़े भौतिक कारण हैं। जानवरों में तुम नहीं पाओगे कि इतनी ज़्यादा इमेज कॉन्सशियसनेस (छवि सतर्कता) है। छवि को लेकर वो इतने सजग नहीं होते। तुम ये नहीं कर पाओगे कि तुम किसी बिल्ली को बहुत ज़ोर से डाँट दो, तो वो अपमान के मारे आत्महत्या कर ले। या किसी कुत्ते को तुमने ‘कुत्ता’ बोल दिया, या बोल दिया, “आदमी कहीं का,” तो वो डिप्रेशन में चला जाए।

ऐसा तो होगा नहीं।

आदमी क्यों अपनी छवि के प्रति सतर्क रहता है, जानते हो?

क्योंकि छवि का भी सीधा-सीधा सम्बन्ध तुम्हारी भौतिक सुख-सुविधाओं से है।

कुत्ता बुरा नहीं मानेगा अगर तुम उसे गाली दे दो।

पर कुत्ता बुरा मानेगा न अगर तुम उसकी रोटी छीन लो?

तुम्हारी भी छवि से तुम्हारी रोटी बंधी हुई है, इसलिए डरते हो।

तुमने अपनी रोटी क्यों दूसरों के हाथ में दे रखी है?

दफ़्तर में अगर तुम्हारी छवि खराब हो गई, तो प्रमोशन नहीं होगा, ‘प्रमोशन’ माने तनख्वाह, ‘तनख्वाह’ माने रोटी। ले -देकर छवि का सीधा सम्बन्ध रोटी से है।

जिस दिन तुम देखना कि छवि का कोई सम्बन्ध तुम्हारी रोटी से नहीं है, उस दिन तुम कहोगे, “छवि गई भाड़ में।”

जब तुम ऐसी जगह पहुँच जाते हो, जहाँ पर तुम्हारी छवि बने या बिगड़े, तुम्हारी सुख-सुविधाओं

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org