समय प्रबंधन की समस्या

जब आप कहते हैं कि आपका समय व्यर्थ ही कहीं ज़ाया हो जाता है, तो उससे शायद आपका आशय ये है कि आप चाहते कुछ और हैं, हो कुछ और जाता है। आप चाह रहे हैं समय लगाएँ इस दिशा में और समय लग जाता है उस दिशा में। हमारा मन हमारी चाहत से कहीं ज़्यादा गहरा होता है। जिसको आप कहते हैं अपनी इच्छा, वो बड़ी सतह-सतह की बात होती है, इच्छाओं के नीचे इच्छा होती है। जो चैतन्य मन होता है, वो बस मन की ऊपरी तह है, उसके नीचे मन का बड़ा सागर बैठा हुआ है, बड़ी गहराइयाँ है वहाँ, और उन गहराईयों में गहरी से गहरी इच्छाएँ दबी हुई हैं।

हमेशा आपका समय जाएगा वहीं जहाँ आप चाहते है कि वो जाए, बिल्कुल भ्रम है ये कहना कि मेरा समय व्यर्थ व्यतीत हो जाता है। किसी का समय व्यर्थ व्यतीत नहीं होता, आजतक जिसने अपना समय जहाँ भी लगाया है, वास्तव में वो वहीं लगाना ही चाहता था, बात बस इतनी सी है कि उसे अपनी चाहत का खुद ही पता नहीं है। आपका समय कहाँ जा रहा है ये आप देख लीजिए, इससे आपको पता चल जाएगा कि आप वास्तव में चाहते क्या हैं।

जिस चीज़ को तुम कीमत देते हो, उसी को तुम समय देते हो। अगर तुम पाओ कि तुम्हारा समय व्यर्थ का साहित्य पढ़ने में जा रहा है या इंटरनेट पर इधर-उधर की वेबसाइट देखने में जा रहा है, इधर-उधर टहलने में या सोने में जा रहा है तो समझ लेना तुम उसी चीज़ को मूल्य देते हो।

तो क्या करे ये जानने के बाद कि हमारे असली मूल्य क्या हैं? कुछ न करें, बस जान लें। बस जान लो कि मन की गहराईयों में क्या बैठा हुआ है तुम्हारे, जानने से ही उसकी चिकित्सा हो जाती है, पता चला नहीं कि उपचार हो गया। हम फंसे भी इसलिए होते हैं…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org